Meri yatrayen = मेरी यात्रायें
Publication details: Lokbharati Prakashan, 1987. Allahabad:Description: 191p.: hbk: 22cmISBN:- 9789389243192
- 910.4 DIN
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 910.4 DIN (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032785 |
इस पुस्तक में पोलैंड, जर्मनी, चीन, मारीशस, कीनिया आदि देशों की यात्राओं का रोचक वर्णन है। दिनकर जी ने अपनी इन यात्राओं को जिस तरह रचनात्मक संवाद का विषय बनाया है, वह अपने प्रभाव में विलक्षण है। पुस्तक का हर अध्याय एक आत्मीयता के साथ सहज ही अपने बहाव में लिए चला जाता है। पोलैंड का वारसा नगर, जहाँ हिटलर के राज्यकाल में नाजियों द्वारा लाखों बेगुनाह मारे गए थे, वह अपने बदले समय में किस तरह राजनीतिक स्वतंत्रता, साहित्यिक-सांस्कृतिक उर्वरता का प्रतीक है; साथ ही अपने साम्यवादी देश की अर्थ-व्यवस्था के लिए आम नागरिकों में भी किस तरह की संघर्ष-चेतना है; दिनकर जी ने तटस्थ होकर आकलन प्रस्तुत किया है। ऐसा वे चीन की यात्रा के दौरान भी करते हैं। वहाँ भी उन्होंने एक साम्यवादी देश के समाज, साहित्य, राजनीति के साथ रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल आदि को बहुत ही करीब से देखने-समझने की कोशिश की है और अन्तर्विरोधों के प्रति अपने बेबाक मंतव्यों से परिचय कराया है। इसी तरह जर्मनी, लंदन, कीनिया जैसे देशों के वर्तमान और अतीत का जो वृत्तान्त है, वह अपने वैज्ञानिक और दार्शनिक बोध में आज भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों से गए लोगों का अपने मूल और मूल्यों के प्रति श्रद्धा और आस्था किस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी हुई है, उसका गहन अन्वेषण दिनकर जी अपनी मारीशस यात्रा के दौरान करते हैं। कुल मिलाकर 'मेरी यात्राओँ' पुस्तक एक ऐसी थाती है जिसके जरिए बीसवीं सदी में कई देशों के उस यथार्थ से अवगत होते हैं, उन देशों के विकास में जिसकी निर्णायक भूमिका रही। चीन के बौद्ध लोग पश्चिमी स्वर्ग में विश्वास करते थे, जहाँ अमिताभ का न है । नए चीनियों का यह मत है कि वह पश्चिमी स्वर्ग भारत ही था । सुखावटी व्यूह के प्रचार के कारण ही चीन के बौद्ध लोग पश्चिमी स्वर्ग में विश्वास करने लगे । किन्तु, संस्कार यह बन गया कि चीन की जनता सभी अच्छी बातों को भारत से ही आई हुई समझने लगी ।.
https://www.amazon.in/Meri-Yatrayen-Dinkar-Granthmala-Vol/dp/938924319X/ref=sr_1_1?crid=1ZR3LEQ6SQAHQ&keywords=9789389243192&qid=1676110448&sprefix=9789389243192%2Caps%2C187&sr=8-1
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