Mohan Das = मोहन दास
- New Delhi: Vani Prakashan, 2020.
- 120p.; pbk; 20cm.
डर का रंग कैसा होता है. सोचने पर डर के लम्हे तो याद आते हैं लेकिन डर का रंग आंख मीचने के बाद भी नहीं दिखता. डर का सामना कर चुके मन को कभी फुर्सत और हिम्मत ही नहीं मिली कि वो डर का रंग देख सके. लेकिन 'मोहनदास' हमें वो रंग दिखाता है जो यूं ही कभी भी हमें दिख सकते हैं अपने आस-पास. जरूरत होगी तो सिर्फ एक मानवीय नजर की. मोहनदास एक छोटी मगर गहरी कहानी है, जिसे सफेद पन्नों पर उदय प्रकाश ने गढ़ने का काम किया है.'मोहनदास' की कहानी इसके मुख्य किरदार मोहनदास, उसकी पत्नी कस्तूरी, टीबी के मरीज पिता, आंखों की रोशनी खो चुकी बूढ़ी मां, बच्चे और उसके जीवन के सच के इर्द-गिर्द घूमती है. सच जो कि सिर्फ उसके लिए या खुदा की नजरों में सच होता है. चूंकि समाज की नजरों में सच वो होता है जो दिख और बिक रहा होता है. मोहनदास दिख नहीं पा रहा था और न ही बिक पा रहा था. वो बस अपनी उधड़ी जिंदगी जी रहा था कुछ सपनों और ज्यादा तकलीफों के बीच।