TY - GEN AU - Verma, Mahadevi TI - Sandhini = सन्धिनी SN - 9788180316197 U1 - 891.43371 PY - 2014/// CY - Allahabad PB - Lokbharti Paperbacks KW - Hindi--Poetry KW - Poetry KW - Mahadevi Verma--Poetry N1 - Includes authors introduction N2 - प्रस्तुत संग्रह ‘सन्धिनी’ में मेरे कुछ गीत संगृहीत हैं। काल-प्रवाह का वर्षों में फैला हुआ चौड़ा पाट उन्हें एक-दूसरे से दूर और दूरतम की स्थिति दे देता है। परन्तु मेरे विचार में उनकी स्थिति एक नदी-तट से प्रवाहित दीपों के समान है। दीपदान के दीपकों में कुछ जल की कम गहरी मन्‍थरता के कारण उसी तट पर ठहर जाते हैं, कुछ समीर के झोंके से उत्पन्न तरंग-भंगिमा में पड़कर दूसरे तट की दिशा में बह चलते हैं और कुछ मँझधार की तरंगाकुलता के साथ किसी अव्यक्त क्षितिज की ओर बढ़ते रहते हैं। परन्तु दीपकों की इन सापेक्ष दूरियों पर दीपदान देनेवाले की मंगलाशा सूक्ष्म अन्तरिक्ष-मंडल के समान फैलकर उन्हें अपनी अलक्ष्य छाया में एक रखती है। मेरे गीतों पर भी मेरी एक आस्था की छाया है। मनुष्य की आस्था की कसौटी काल का क्षण नहीं बन सकता, क्योंकि वह तो काल पर मनुष्य का स्वनिर्मित सीमावतरण है। वस्तुत: उनकी कसौटी क्षणों की अटूट संसृति से बना काल का अजस्र प्रवाह ही रहेगा। 'सन्धिनी' नाम साधना के क्षेत्र से सम्बन्ध रखने के कारण बिखरी अनुभूतियों की एकता का संकेत भी दे सकता है और व्यष्टिगत चेतना का समष्टिगत चेतना में संक्रमण भी व्यंजित कर सकेगा। https://rajkamalprakashan.com/sandhini.html ER -