Shrikant Verma rachanawali = श्रीकान्त वर्मा रचनावली, Vol. 1-8
Publication details: New Delhi: Rajkamal Prakashan, 2014.Edition: 2ndDescription: 3847p. hbk: 22cmISBN:- 9788126727292
- 891.431 TRI
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Notes | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.431 TRI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 1 | 033156 | |
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.431 TRI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 2 | 033157 | |
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.431 TRI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 3 | 033158 | |
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.431 TRI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 4 | 033159 | |
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.431 TRI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 5 | 033160 | |
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.431 TRI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 6 | 033161 | |
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.431 TRI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 7 | 033162 | |
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.431 TRI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 8 | 033163 |
Browsing IIT Gandhinagar shelves, Collection: General Close shelf browser (Hides shelf browser)
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
||
891.431 TRI Shrikant Verma rachanawali = श्रीकान्त वर्मा रचनावली, Vol. 1-8 | 891.431 TRI Shrikant Verma rachanawali = श्रीकान्त वर्मा रचनावली, Vol. 1-8 | 891.431 TRI Shrikant Verma rachanawali = श्रीकान्त वर्मा रचनावली, Vol. 1-8 | 891.431 TRI Shrikant Verma rachanawali = श्रीकान्त वर्मा रचनावली, Vol. 1-8 | 891.431 TRI Ankahee abhivyakti =अनकही अभिव्यक्ति | 891.431 VAJ Hawa mein hastakshar= हवा में हस्ताक्षर | 891.431 VAJ Kam se kam=कम से कम |
श्रीकान्त वर्मा मुक्तिबोध की पीढ़ी के बाद के कवियों में अन्यतम बेचैन और उत्तप्त कवि इस माने में ज़्यादा हैं कि उन्होंने अपनी कविता के ज़रिए न केवल अपने समय का सीधा, तीक्ष्ण और अन्दर तक तिलमिला देनेवाला भयावह साक्षात्कार किया, बल्कि हर अमानवीय ताक़त के विरुद्ध एक निर्मम और नंगी भिड़ंत की। इसीलिए उनकी कविता में नाराज़गी, असहमति और विरोध का स्वर सबसे मुखर है।
उनकी कविता उस दर्पण की तरह है, जहाँ कोई झूठ छिप नहीं सकता। उनकी कविता हर झूठ के विरुद्ध कहीं प्रतिशोध है तो कहीं सार्थक वक्तव्य। शायद इसीलिए वे सन् 60 के बाद की कविता के हिन्दी के पहले नाराज़ कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। वे एक ओर मानवीय संवेदना के गहन ऐन्द्रिक प्रेम और क्षोभ के विरल कवि हैं तो दूसरी तरफ़ सामाजिक कर्म की कविता में नैतिक क्षोभ से उपजे सामाजिक हस्तक्षेप के दुर्लभ कवि हैं। वे उत्तर खोजने के बजाय प्रश्न खड़े करनेवाले कवि हैं।
‘भटका’ मेघ से शुरू हुई श्रीकान्त वर्मा की काव्य–यात्रा ‘माया दर्पण’, ‘दिनारंभ’ और ‘जलसाघर’ से गुज़रते हुए एक ऐसी कवि की दुनिया है जहाँ बीसवीं शताब्दी के मनुष्य की अपने समय से सीधी बहस है। कवि दूसरे से उलझने के बजाय स्वयं से प्रश्न करता है जहाँ उसके आत्माभियोग और आत्म–स्वीकार का स्वर सबसे मूल्यवान है।
‘मगध’ और ‘गरुड़ किसने देखा है’ एक ऐसे कवि की अथाह करुणा की पुकार है जो युग–संधि पर खड़ा अपने समय के मनुष्य, समाज, राजनीति, इतिहास और काल को बहुत निर्मम होकर बेचैनी के साथ देखते हुए मनुष्य और समाज की नियति को परिभाषित कर रहा है। इसीलिए ‘मगध’ समकालीन व्यवस्था का मर्सिया भर नहीं है बल्कि समय, समाज और व्यवस्था के विरुद्ध एक सीधा हस्तक्षेप है।
इस खंड में पहली बार श्रीकान्त वर्मा की सम्पूर्ण प्रकाशित–अप्रकाशित, संकलित–असंकलित कविताओं का संचयन किया गया है जिसमें दर्ज है—एक कवि का सम्पूर्ण संसार जो अनेक संसारों में फैला हुआ है। इसके अतिरिक्त इस खंड में पुस्तकों की भूमिकाएँ, सम्पादकीय और अपने समकालीनों के साथ दो महत्त्वपूर्ण संवाद भी मौजूद हैं।
https://rajkamalprakashan.com/shrikant-verma-rachanawali-vols-1-8.html
There are no comments on this title.