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Kuano nadi = कुआनो नदी

By: Publication details: Rajkamal Prakashan, 2015. New Delhi:Description: 95p.; hbk; 22cmISBN:
  • 9788171783588
Subject(s): DDC classification:
  • 891.43371 SAX
Summary: शब्द पड़ने लगे छोटे दर्द बढ़ने लगा कहे भी थे जो कभी सब हो गए अनकहे” छठे दशक में हिन्दी कविता में जो ताज़गी और सम्पन्नता आई थी, वह आज भले ही इधर-उधर छितरा गई दिखती हो, पर सर्वेश्वर के काव्य में आज भी सही-सलामत मौजूद है। इंसान के गहरे दु:खों में सामयिक दृश्यों का अर्थ व्यक्त करनेवाली वही सहजता उनकी कविता में अन्त तक मिलती है जो पहले कविता-संग्रह ‘काठ की घंटियाँ’ के प्रकाशन ने उनके नाम के साथ जोड़ी थी। राजनीति की अमानवीयता और मानव सम्बन्धों के विशृंखलन का त्रास सर्वेश्वर ने समाज के दबे हुए वर्गों, युद्ध में खेत रहे समाजों और प्राकृतिक कोप में असहाय मरते लोगों के बीच महसूस और अभिव्यक्त किया है। यह संग्रह सर्वेश्वर की काव्य-यात्रा में किसी मोड़ का सूचक नहीं, केवल उन अन्तर्धाराओं के पहले से अधिक अधीर और मुखर हो उठने का सूचक है जिन्हें पाठक तथा समीक्षक उनकी कविता में बराबर पाते रहे हैं। ‘कुआनो नदी’ माला की तीन कविताओं के माध्यम से सर्वेश्वर ने एक ऐसा गहन प्रतीक हिन्दी कविता को दिया है, जिसका अर्थवृत्त समय के साथ फैलता रहा है। https://rajkamalprakashan.com/kuano-nadi.html
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Hindi Books Hindi Books IIT Gandhinagar General 891.43371 SAX (Browse shelf(Opens below)) 1 Available 032564

Includes authors introduction

शब्द पड़ने लगे छोटे

दर्द बढ़ने लगा

कहे भी थे जो कभी सब हो गए अनकहे”

छठे दशक में हिन्दी कविता में जो ताज़गी और सम्पन्नता आई थी, वह आज भले ही इधर-उधर छितरा गई दिखती हो, पर सर्वेश्वर के काव्य में आज भी सही-सलामत मौजूद है। इंसान के गहरे दु:खों में सामयिक दृश्यों का अर्थ व्यक्त करनेवाली वही सहजता उनकी कविता में अन्त तक मिलती है जो पहले कविता-संग्रह ‘काठ की घंटियाँ’ के प्रकाशन ने उनके नाम के साथ जोड़ी थी। राजनीति की अमानवीयता और मानव सम्बन्धों के विशृंखलन का त्रास सर्वेश्वर ने समाज के दबे हुए वर्गों, युद्ध में खेत रहे समाजों और प्राकृतिक कोप में असहाय मरते लोगों के बीच महसूस और अभिव्यक्त किया है। यह संग्रह सर्वेश्वर की काव्य-यात्रा में किसी मोड़ का सूचक नहीं, केवल उन अन्तर्धाराओं के पहले से अधिक अधीर और मुखर हो उठने का सूचक है जिन्हें पाठक तथा समीक्षक उनकी कविता में बराबर पाते रहे हैं। ‘कुआनो नदी’ माला की तीन कविताओं के माध्यम से सर्वेश्वर ने एक ऐसा गहन प्रतीक हिन्दी कविता को दिया है, जिसका अर्थवृत्त समय के साथ फैलता रहा है।

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