Jungle ka dard = जंगल का दर्द
Publication details: Rajkamal Prakashan, 2019. New Delhi:Edition: 2ndDescription: 127p.; hbk; 21cmISBN:- 9789388933155
- 891.43371 SAX
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 SAX (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032561 |
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891.43371 SAR Girte sambhalte = गिरते सम्भलते | 891.43371 SAR Kuch thahre thahre se hain pal =कुछ ठहरे ठहरे सें हैं पल | 891.43371 SAS Tap ke taye huye din = ताप के ताए हुए दिन | 891.43371 SAX Jungle ka dard = जंगल का दर्द | 891.43371 SAX Nepali kavitayen = नेपाली कविता | 891.43371 SAX Khoontiyon per tange log = खूँटियों पर टँगे लोग | 891.43371 SAX Kuano nadi = कुआनो नदी |
Includes authors introduction
‘जंगल का दर्द’ में कवि सर्वेश्वर की अपने अन्तर्जगत और बाह्य-जगत के जानवरों से लड़ाई, समसामयिक हिन्दी कविता की उपलब्धि है। ‘कुआनो नदी’ की कविताएँ डूबते सूरज की लम्बी परछाइयाँ थीं। अब ‘जंगल का दर्द’ में अंधकार सिमटकर बुलेट–सा छोटा, ठोस और भारी हो गया है। काव्य–विन्यास में इस परिवर्तन को कवि की यातना और दृष्टि से जोड़कर ही समझा जा सकता है। भेड़िए, कुत्ते, तेन्दुए, चिड़ियाँ, तितलियाँ, इस जंगल में सबसे उसका सामना होता है, उनसे वह जूझता है, बचता है, सीखता है और मानव नियति की राह टटोलता, झाड़ियों की रगड़ से अपनी देह का संगीत सुनता, ख़ुद को उधेड़ता–बुनता आगे बढ़ता जाता है। यह यात्रा जारी है, और हिन्दी कविता की भावी यात्रा के प्रति आश्वस्त करती है। यह काव्य–संग्रह ढहते मूल्यों के बीच खड़े रहने की सामर्थ्य देता है और यह स्पष्ट करता है कि कविता का मुख्य प्रयोजन सौन्दर्य–बोध के विस्तार के साथ–साथ मानव–आत्मा को निर्भीक करना और उसे कर्म से जोड़ना है।
https://rajkamalprakashan.com/jungle-ka-dard.html
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