Aalochana aur samvad = आलोचना और संवाद
Publication details: Rajkamal Prakashan, 2018. New Delhi:Description: 223p.; hbk; 23cmISBN:- 9788126730636
- 891.43009 SIN
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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Hindi Books | IIT Gandhinagar | General | 891.43009 SIN (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032533 |
Includes authors introduction
उनका अध्ययन असीम है, स्मृति अथाह और वैचारिक व्याकुलता अविराम। नामवर सिंह के रूप में हिन्दी के पास एक ऐसा व्यक्तित्व है जो सतत चिन्तनशील है, सतत सृजनरत है, सदैव मुखर है। आलोचक या लेखक होना उनके लिए सिर्फ़ एक औपचारिक बाना नहीं है जिसे अवसर देखकर पहना और उतारा जा सके। उनका होना वही होना है जैसा हम उन्हें देखते हैं। जब वे नियमपूर्वक नहीं लिख रहे थे, और ज़्यादातर भाषणों और व्याख्यानों में अपनी बात रख रहे थे तब भी उन्होंने बहुत लिखा : कभी किसी पुस्तक की भूमिका के रूप में, कभी किसी आयोजन के लिए और कभी स्वतंत्र किसी पत्र-पत्रिका के लिए।
इस पुस्तक में उनके ऐसे ही असंकलित और कुछ अप्रकाशित आलेखों को संकलित किया गया है। इनमें से जो आलेख किसी पुस्तक की भूमिका के तौर पर लिखे गए, वे भी सिर्फ़ पुस्तक की प्रशस्ति नहीं हैं, उनमें समीक्षा-आलोचना के उन्हीं मानदंडों का निर्वाह किया गया है, जो नामवर सिंह के चिन्तन की पहचान हैं। रचना को अनेक कोणों से जानने की कोशिश और उसके उस मूल तत्त्व को रेखांकित करने का प्रयास जो उस रचना या उस लेखक को विशिष्ट बनाता है।
इस संकलन में हम भारत और विश्व के कुछ ऐसे रचनाकारों को नामवर जी की निगाह से देखेंगे जो निसन्देह अपरिचित नाम नहीं हैं। उन्हें हमने पढ़ा भी है, समझा भी है लेकिन यहाँ नामवर जी की व्याख्या के साथ उन्हें जानना बेशक एक उपलब्धि है। साथ ही भाषा सम्बन्धी विमर्श और अंग्रेज़ी में लिखित कुछ व्याख्यानों का अनुवाद भी यहाँ संकलित है जो पाठकों के लिए निश्चित ही संग्रहणीय है।
https://rajkamalprakashan.com/aalochana-aur-samvad.html
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