Premchand = प्रेमचंद
Publication details: Radhakrishna Prakashan, 2018. Delhi:Description: 143p.; pbk; 22cmISBN:- 9788183614559891.43009
- 891.43009 SHA
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43009 SHA (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032523 |
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891.43009 RAM Bhajpa ke Gandhi: Pandit Deendayal Upadhyay = भाजपा के गांधी: पंडित दीनदयाल उपाध्याय | 891.43009 RAM Ek vigyanik sant Swami Vivekananda = एक वैज्ञानिक संत स्वामी विवेकानंद | 891.43009 ROY Vignana aur darshan = विज्ञान और दर्शन | 891.43009 SHA Premchand = प्रेमचंद | 891.43009 SHA Bharatiya sahitya ki bhumika = भारतीय साहित्य की भूमिका | 891.43009 SHA Premchand aur unka yug = प्रेमचंद और उनका युग | 891.43009 SHA Parampara ka mulyankan = परम्परा का मूल्यांकन |
Includes authors introduction
प्रेमचन्द’ नामक यह पुस्तक डॉ. रामविलास शर्मा की पहली आलोचना-कृति है। कहा जा सकता है कि न सिर्फ़ पाठकों के लिए इसका ऐतिहासिक महत्त्व है, बल्कि स्वयं रामविलास जी के लिए भी यह एक महत्त्वपूर्ण कृति थी।
लेकिन इसकी ऐतिहासिकता के अनेक आयाम हैं, जिनमें से एक है प्रेमचन्द-साहित्य को लेकर 1935-40 के दौरान चले कई तरह के विवादों में सार्थक हस्तक्षेप। सन्दर्भतः इस पुस्तक ने उन लेखकों को भी जवाब दिया जो प्रेमचन्द-साहित्य के प्रगतिशील पक्ष को नकार रहे थे और उन प्रगतिशीलों को भी जो यूरोपीय लेखकों के प्रभाववश प्रेमचन्द की प्रगतिशील रचनादृष्टि को पिछड़ी बता रहे थे। इस संस्करण में एक लम्बी भूमिका जोड़कर डॉ. शर्मा ने गोर्की, टाल्स्टाय और दोस्तोएव्स्की के रचनाकर्म के सन्दर्भ में प्रेमचन्द-साहित्य की प्रगतिशील मूल्यवत्ता से जुड़ी अपनी मूल प्रस्थापनाओं को और भी सुदृढ़ किया है।
संक्षेप में, प्रेमचन्द-साहित्य को लेकर इस पुस्तक की विवेचना-दृष्टि को रामविलास जी के ही शब्दों में यूँ रखा जा सकता है : “समाज के विभिन्न स्तरों का व्यापक ज्ञान संसार के बहुत कम साहित्यिकों में मिलेगा। प्रेमचन्द के विचार बहुत स्पष्ट नहीं थे, परन्तु उनमें कलाकार की सचाई की कमी न थी।...आज के साहित्यिक के विचार बहुत कुछ स्पष्ट हो गए हैं; परन्तु उसके पास प्रेमचन्द का अनुभव नहीं, उनकी-सी सचाई भी कम है। प्रेमचन्द की कृतियों का हमारे लिए यह सन्देश है कि हम जनता में जाकर रहें और काम करें—रचनाओं में ‘जनता-जनता’ कम चिल्लाएँ। प्रेमचन्द ने साहित्य में कितना काम किया है और कहाँ से अपनी साहित्यिकता आरम्भ करने से लेखक प्रगतिशील बन सकता है, कम से कम इतना इस पुस्तक के पढ़ने से स्पष्ट हो जाना चाहिए।”
https://rajkamalprakashan.com/premchand.html
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