Saare sukhan humare = सारे सुखन हमारे
Publication details: Rajkamal Prakashan, 2017. New Delhi:Edition: 8thDescription: 397p.; hbk; 23cmISBN:- 9788171789566
- 891.43371 FAI
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 FAI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032445 |
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891.43371 FAI Daste-saba = दस्ते-सबा | 891.43371 FAI Zindan-nama = जिंदा-नामा | 891.43371 FAI Faiz = फैज | 891.43371 FAI Saare sukhan humare = सारे सुखन हमारे | 891.43371 FAI Pratinidhi kavitayen: Faiz Ahmed ‘Faiz’ = प्रतिनिधि कवितायेन: फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' | 891.43371 GAN Suno vidhyarthiyon = सुनो विद्यार्थियों | 891.43371 GAN Praveen Kumar saxena ‘Ujala’ ek mulyankan = प्रवीण कुमार सक्सेना ‘उजाला’ एक मूल्यांकन |
Includes author introduction
‘सारे स़ुखन हमारे’ के रूप में समकालीन उर्दू शाइरी के अजीमुश्शान शाइर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की तमाम ग़ज़लों, नज़्मों, गीतों और क़तआ’त को हिन्दी में पहली बार एक साथ प्रस्तुत किया गया है। इसमें उनका आख़िरी कलाम तक शामिल है।
उर्दू शाइरी में फ़ैज़ को ग़ालिब और इक़बाल के पाये का शाइर माना गया है, लेकिन उनकी प्रतिबद्ध प्रगतिशील जीवन-दृष्टि सम्पूर्ण उर्दू शाइरी में उन्हें एक नई बुलन्दी सौंप जाती है। फूलों की रंगो-बू से सराबोर शाइरी से अगर आँच भी आ रही हो तो मान लेना चाहिए कि फ़ैज़ वहाँ पूरी तरह मौजूद हैं। यही उनकी शाइरी की ख़ास पहचान है, यानी रोमानी तेवर में ख़ालिस इन्क़लाबी बात। उनकी तमाम रचनाओं में जैसे एक अर्थपूर्ण उदासी, दर्द और कराह छुपी हुई है, इसके बावजूद वह हमें अद्भुत रूप से अपनी पस्तहिम्मती के ख़िलाफ़ खड़ा करने में समर्थ हैं। कारण, रचनात्मकता के साथ चलनेवाले उनके जीवन-संघर्ष। उन्हीं में उनकी शाइरी का जन्म हुआ और उन्हीं के चलते वह पली-बढ़ी। वे उसे अपने लहू की आग में तपाकर अवाम के दिलो-दिमाग़ तक ले गए और कुछ इस अन्दाज़ में कि वह दुनिया के तमाम मजलूमों की आवाज़ बन गई।
वस्तुत: फ़ैज़ की शाइरी हमारे समय की गहन मानवी, समाजी और सियासी सच्चाइयों का पर्याय है। वह हर पल असलियत के साथ है और भाषाई दीवारों को लाँघकर बोलती है। कहना न होगा कि उर्दू के इस महान शाइर की सम्पूर्ण कविताओं का यह एकज़िल्द मज्मूआ
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