Naqsh-e-fariyadi = नक्श-ए-फरियादी
Publication details: Rajkamal Paperbacks, 2021. New delhi:Edition: 2ndDescription: 101p. pbk; 20cmISBN:- 9789389598452
- 891.43371 FAI
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 FAI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032441 |
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891.43371 DIN Parshuram ki pratiksha: dinkar granthmala = परशुराम की प्रतीक्षा: दिनकर ग्रंथमाला | 891.43371 DIN Dinkar ke geet = दिनकर के गीत | 891.43371 FAI Mere dil mere musafir = मेरे दिल मेरे मुसाफिर | 891.43371 FAI Naqsh-e-fariyadi = नक्श-ए-फरियादी | 891.43371 FAI Daste-saba = दस्ते-सबा | 891.43371 FAI Zindan-nama = जिंदा-नामा | 891.43371 FAI Faiz = फैज |
Includes author introduction
Urdu literature
‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का पहला कविता-संग्रह है जो पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। मुहब्बत और इन्क़लाब का जो अटूट अपनापा आगे चलकर फ़ैज़ की समूची शायरी की पहचान बना, उसकी बुनियाद इस संग्रह में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इसमें बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक की उनकी तहरीरें शामिल हैं, जब फ़ैज़ युवा थे और उनका दिलो-दिमाग़ एक तरफ़ ‘ग़मे-जानाँ’ से तो दूसरी तरफ़ ‘ग़मे-दौराँ’ से एक साथ वाबस्ता हो रहा था। स्वाभाविक ही है कि इस संग्रह के शुरुआती हिस्से में ग़मे-जानाँ का रंग गहरा नज़र आता है, जो आख़िरी हिस्से में पहुँचते-पहुँचते ग़मे-दौराँ के रंग में मिल जाता है।
और तब फ़ैज़ लिखते हैं, ‘मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरी महबूब न माँग’। गोकि इस सोच की शिनाख़्त शुरुआती हिस्से की तहरीरों में भी नामुमकिन नहीं है। मगर अहम बात यह है कि फ़ैज़ एलान करते हैं कि ग़मे-जानाँ और ग़मे-दौराँ एक ही तजुर्बे के दो पहलू हैं। यही वह एहसास है, जिससे उनकी शायरी तमाम सरहदों को लाँघती हुई पूरी दुनिया के अवाम की आवाज़ बन गई है। ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ इस एहसास का घोषणापत्र है।
https://rajkamalprakashan.com/naqsh-e-fariyadi.html
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