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Philhal = फिलहाल

By: Publication details: Rajkamal Prakshan, 2021. New Delhi:Description: 162p.; hbk; 23cmISBN:
  • 9788126713684
Subject(s): DDC classification:
  • 891.43009 VAJ
Summary: पचास साल पहले प्रकाशित यह पुस्तक ऐसे समीक्षात्मक लेखों का संग्रह है, जिससे हिन्‍दी आलोचना में एक ‘रेडिकल चेंज’ आया, और आज भी इसका महत्‍त्‍व अपनी उल्‍लेखनीय भूमिका में बना हुआ है। पुस्‍तक में शामिल अपने लेखों के बारे में अशोक वाजपेयी ने ख़ुद ‘दृश्यालेख’ में स्‍पष्‍ट किया है कि ये लेख ‘जब-तब लिखे गए हैं और इसलिए इनमें बहुत स्पष्ट तारतम्य नहीं है’। पर अपनी समग्रता में ये ‘उन खोजों और आग्रहों को’ उजागर करते हैं जो समकालीन कविता के मूल में हैं। युवा कवि‍ता के घटाटोप से बौखलाकर जब सिद्ध और प्रतिष्ठित समीक्षक आँख मींच बैठे हों, तब उस ढेर में से सही और सार्थक कविता की पहचान करने-कराने का अशोक वाजपेयी का यह प्रयत्न कल भी आत्यन्तिक महत्त्व रखता था, आज भी रखता है। इस पुस्‍तक में अपने समय के युवा-लेखन की गड़बड़ियों और उनके स्रोतों को स्पष्ट करते हुए अशोक वाजपेयी अच्छे कवि‍यों की रचना की मूल्यवत्ता को रेखांकित करने में सफल हुए हैं। वैज्ञानिक समझ और बेलाग सफ़ाई से उन्होंने काव्य-सृजन को परखा है और मुक्तिबोध, कमलेश, धूमिल आदि समकालीन कवियों की कविता की विशेषताओं को सही रोशनी में रखा है। अपने लेखन से उन्होंने समकालीन आलोचना को जो नई समझ और उसके लिए जो ज़रूरी मुहावरा दिया, उसके बल पर हम कह सकते हैं कि इस पुस्तक के प्रकाशन का हिन्दी समीक्षा पर ही नहीं, हिन्दी कविता पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। निस्‍सन्‍देह, आलोचना साहित्‍य में एक बहुमूल्‍य और विरल कृति का नाम है ‘फ़िलहाल’। https://rajkamalprakashan.com/philhal.html
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Hindi Books Hindi Books IIT Gandhinagar General 891.43009 VAJ (Browse shelf(Opens below)) 1 Available 032278

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पचास साल पहले प्रकाशित यह पुस्तक ऐसे समीक्षात्मक लेखों का संग्रह है, जिससे हिन्‍दी आलोचना में एक ‘रेडिकल चेंज’ आया, और आज भी इसका महत्‍त्‍व अपनी उल्‍लेखनीय भूमिका में बना हुआ है।

पुस्‍तक में शामिल अपने लेखों के बारे में अशोक वाजपेयी ने ख़ुद ‘दृश्यालेख’ में स्‍पष्‍ट किया है कि ये लेख ‘जब-तब लिखे गए हैं और इसलिए इनमें बहुत स्पष्ट तारतम्य नहीं है’। पर अपनी समग्रता में ये ‘उन खोजों और आग्रहों को’ उजागर करते हैं जो समकालीन कविता के मूल में हैं। युवा कवि‍ता के घटाटोप से बौखलाकर जब सिद्ध और प्रतिष्ठित समीक्षक आँख मींच बैठे हों, तब उस ढेर में से सही और सार्थक कविता की पहचान करने-कराने का अशोक वाजपेयी का यह प्रयत्न कल भी आत्यन्तिक महत्त्व रखता था, आज भी रखता है।

इस पुस्‍तक में अपने समय के युवा-लेखन की गड़बड़ियों और उनके स्रोतों को स्पष्ट करते हुए अशोक वाजपेयी अच्छे कवि‍यों की रचना की मूल्यवत्ता को रेखांकित करने में सफल हुए हैं। वैज्ञानिक समझ और बेलाग सफ़ाई से उन्होंने काव्य-सृजन को परखा है और मुक्तिबोध, कमलेश, धूमिल आदि समकालीन कवियों की कविता की विशेषताओं को सही रोशनी में रखा है। अपने लेखन से उन्होंने समकालीन आलोचना को जो नई समझ और उसके लिए जो ज़रूरी मुहावरा दिया, उसके बल पर हम कह सकते हैं कि इस पुस्तक के प्रकाशन का हिन्दी समीक्षा पर ही नहीं, हिन्दी कविता पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।

निस्‍सन्‍देह, आलोचना साहित्‍य में एक बहुमूल्‍य और विरल कृति का नाम है ‘फ़िलहाल’।

https://rajkamalprakashan.com/philhal.html

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