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Anyatra = अन्यत्र

By: Publication details: Rajkamal Prakshan, 2011. New Delhi:Description: 441p.; hbk; 23cmISBN:
  • 9788126720293
Subject(s): DDC classification:
  • 891.3405060826 VAJ
Summary: अपने समय के कुछ मूर्धन्य लेखकों, चित्रकारों और संगीतकारों के साथ बातचीत करने का अवसर मिलना हर तरह से सौभाग्य कहा जाएगा। ऐसी बातचीत में अकसर किसी व्यक्ति की जि‍न्‍दगी, दृष्टि, उलझनों और उत्सुकताओं के अनेक अनजाने पहलुओं से साक्षात् हो पाता है। इनमें से अधिकांश साक्षात्कार ‘आलोचना’ (त्रैमासिक) और ‘पूर्वग्रह’ में प्रकाशित हुए थे। उनका शुरू से ही आग्रह अनौपचारिक आलोचना को भी जगह देने का था और ये उसी का हिस्सा थे। तब जानबूझकर बातचीत का स्वाद बनाए रखने के लिए उसे लगभग जस का तस दे दिया जाता था। इतने बरसों बाद अब शायद इसलिए कहीं-कहीं अटपटापन लगे, पर उस समय के स्वाद का भी पता चले, इसलिए उस सामग्री में नोक-पलक सुधारने की कोशिश नहीं के बराबर की गई है। कई बार बातचीत मैंने अकेले नहीं की है। उसमें नामवर सिंह, विजयदेव नारायण साही, रमेशचन्द्र शाह, राहुल बारपुते, भगवत रावत, गीता कपूर, मंगलेश डबराल, उदय प्रकाश, सुदीप बनर्जी, सत्येन कुमार, ज्योत्स्ना मिलन, मदन सोनी, उदयन वाजपेयी भी शामिल थे। जो परिसंवाद शामिल किया गया है उसमें कुँवर नारायण, नेमिचन्द्र जैन, रघुवीर सहाय, कमलेश, जगदीश स्वामीनाथन, विजय मोहन सिंह भी शामिल थे। इन सभी के प्रति कृतज्ञता। उनकी शिरकत से कई बातचीतें अनेक दृष्टियों का समवाय भी बन पाई हैं। जिनसे बातचीत की गई थी उनमें से जैनेन्द्र कुमार, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, निर्मल वर्मा, पण्डित कुमार गन्धर्व और चेस्लाव मीलोष अब इस संसार में नहीं हैं। पहली बातचीत 1976 की है और आखि़री 2006 की। अगर बातचीत को एक निजी विश्लेषण और आकलन मानें तो यह लगभग 30 वर्षों में फैला ऐसा दस्तावेज़ है जो उसे एकत्र करता है। —भूमिका से https://rajkamalprakashan.com/anyatra.html
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अपने समय के कुछ मूर्धन्य लेखकों, चित्रकारों और संगीतकारों के साथ बातचीत करने का अवसर मिलना हर तरह से सौभाग्य कहा जाएगा। ऐसी बातचीत में अकसर किसी व्यक्ति की जि‍न्‍दगी, दृष्टि, उलझनों और उत्सुकताओं के अनेक अनजाने पहलुओं से साक्षात् हो पाता है। इनमें से अधिकांश साक्षात्कार ‘आलोचना’ (त्रैमासिक) और ‘पूर्वग्रह’ में प्रकाशित हुए थे। उनका शुरू से ही आग्रह अनौपचारिक आलोचना को भी जगह देने का था और ये उसी का हिस्सा थे। तब जानबूझकर बातचीत का स्वाद बनाए रखने के लिए उसे लगभग जस का तस दे दिया जाता था। इतने बरसों बाद अब शायद इसलिए कहीं-कहीं अटपटापन लगे, पर उस समय के स्वाद का भी पता चले, इसलिए उस सामग्री में नोक-पलक सुधारने की कोशिश नहीं के बराबर की गई है।

कई बार बातचीत मैंने अकेले नहीं की है। उसमें नामवर सिंह, विजयदेव नारायण साही, रमेशचन्द्र शाह, राहुल बारपुते, भगवत रावत, गीता कपूर, मंगलेश डबराल, उदय प्रकाश, सुदीप बनर्जी, सत्येन कुमार, ज्योत्स्ना मिलन, मदन सोनी, उदयन वाजपेयी भी शामिल थे। जो परिसंवाद शामिल किया गया है उसमें कुँवर नारायण, नेमिचन्द्र जैन, रघुवीर सहाय, कमलेश, जगदीश स्वामीनाथन, विजय मोहन सिंह भी शामिल थे। इन सभी के प्रति कृतज्ञता। उनकी शिरकत से कई बातचीतें अनेक दृष्टियों का समवाय भी बन पाई हैं।

जिनसे बातचीत की गई थी उनमें से जैनेन्द्र कुमार, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, निर्मल वर्मा, पण्डित कुमार गन्धर्व और चेस्लाव मीलोष अब इस संसार में नहीं हैं।

पहली बातचीत 1976 की है और आखि़री 2006 की। अगर बातचीत को एक निजी विश्लेषण और आकलन मानें तो यह लगभग 30 वर्षों में फैला ऐसा दस्तावेज़ है जो उसे एकत्र करता है।

—भूमिका से

https://rajkamalprakashan.com/anyatra.html

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