Nakshtraheen samay mein = नक्षत्रहीन समय में
Publication details: Rajkamal Prakshan, 2016. New Delhi:Description: 127p.; hbk; 23cmISBN:- 9788126728220
- 891.43371 VAJ
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 VAJ (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032271 |
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891.43371 VAJ Dukh chitthirasa hai = दुख चिठ्ठीरसा है | 891.43371 VAJ Kahin koi darwaja = कहीं कोई दरवाजा | 891.43371 VAJ Khul gaya hai dwar ek = खुल गया है द्वार एक | 891.43371 VAJ Nakshtraheen samay mein = नक्षत्रहीन समय में | 891.43371 VAJ Punarvasu = पुनर्वसु | 891.43371 VAJ Samay ke pass samay = समय के पास समय | 891.43371 VAJ Tatpurush = तत्पुरुष |
Includes author introduction
अशोक वाजपेयी का यह पन्द्रहवाँ कविता-संग्रह उनके पहले कविता-संग्रह के प्रकाशन के 50वें वर्ष में प्रकाशित हो रहा है। अपनी कविता के मूल स्वर और सरोकार पर अड़े रहे इस कवि ने हर बार अपनी कविता के संसार में कुछ ऐसा शामिल किया, खोजा है जो पहले नहीं था। इस बार समकालीन राजनीति में जो उथल-पुथल हुई है, उसके प्रतिरोध के रूप में उनकी कविता खड़ी हुई है। टेढ़ेपन पर अटल भरोसा रखनेवाले कवि ने इसमें कुछ सपाटबयानी भी की है। इस सबके बावजूद होने का अवसाद, गहरा आत्मालोचन और अदम्य जिजीविषा सब कुछ यहाँ एक साथ है। सयानापन और ज़िम्मेदारी, शब्द और शिल्प से कुछ खिलवाड़ तथा रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का सहज अध्यात्म फिर चरितार्थ है।
https://rajkamalprakashan.com/nakshtraheen-samay-mein.html
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