Ghabraye hue shabda = घबराए हुए शब्द
Publication details: Rajkamal Prakshan, 2009. New Delhi:Description: 82p.; hbk; 23cmISBN:- 9788126717903
- 891.43371 JAG
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 JAG (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032240 |
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891.43371 GUP Yasodhara = यशोधरा | 891.43371 GYA Sanshyatma = संशयात्मा | 891.43371 JAG Bachi hui prithavi = बची हुई पृथ्वी | 891.43371 JAG Ghabraye hue shabda = घबराए हुए शब्द | 891.43371 JAG Is yatra mein = इस यात्रा में | 891.43371 JAG Ishwar ki adhyakshata mei = ईश्वर की अध्यक्षता में | 891.43371 JAG Jitane log utane prem = जितने लोग उतने प्रेम |
Includes authors introduction
समकालीन हिन्दी कविता में अब एक काव्य-शैली का ही नाम है—लीलाधर जगूड़ी। जगूड़ी की इन कविताओं का सम्पर्क जताता है कि यथार्थ मनुष्य से भी प्राचीन है और कवि उसे हर बार अपने समय और स्थान की चेतना में सही दूरी रखकर अनावृत्त करता है। अपने ज़माने की संचार-भाषा को संकल्प से जोड़ने के बावजूद ये कविताएँ ‘बताती’ कम और ‘पूछती’ ज़्यादा हैं।
इन कविताओं में वैयक्तिक संवेदना ने भाषा को सांस्कृतिक चेतना के अधिक योग्य बनाया है। मानवकृत सभ्यता और इतिहास के बीच की बातचीत के लिए आदमी ही इन कविताओं का मुख्य आधार है। वही आदमी एक ‘सम्पूर्ण आदमी’ बन सकने के लिए तरह-तरह से अपनी सामुदायिक पहचान बनाता चलता है जो गाहे-बगाहे नियति के निरीह प्रसंग में अविश्वसनीय और अकेला दिखता है।
परिवेश ही जगूड़ी की इन कविताओं का मुख्य पात्र है। प्रत्येक स्थल पर यह महसूस होता रहता है कि हिंसा और युद्ध के बीच मानवीय श्रम के कई दूसरे रूप भी हैं जो उतनी ही तत्परता से भाषा का निर्माण करते हैं जितनी तत्परता से विचार व सौन्दर्य का। इन कविताओं में प्रवेश पाते ही हम अपने सामाजिक जीवन के एक-न-एक गहरे प्रसंग से जुड़ जाते हैं। समकालीन कविता में एक साथ कई स्तरों पर भाषा का ऐसा विकास दुर्लभ है।
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