Mahuacharit = महुआचरित
Publication details: Rajkamal Prakashan, 2019. New Delhi:Description: 99p.; hbk; 23cmISBN:- 9788126722297
- 891.433 SIN
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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Hindi Books | IIT Gandhinagar | General | 891.433 SIN (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032206 |
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891.433 SHU Yahan se vahan=यहाँ से वहाँ | 891.433 SHU Milan ki aahat =मिलन की आहट | 891.433 SHU Sapnon ke morpankh (upanyas) = सपनों के मोरपंख ( उपन्यास ) | 891.433 SIN Mahuacharit = महुआचरित | 891.433 SIN Rehan par ragghu = रेहन पर रग्घू | 891.433 SIN Kashi ka assi = काशी का अस्सी | 891.433 SIN Apna morcha = अपना मोर्चा |
Includes author introduction.
वरिष्ठ कथाकार काशीनाथ सिंह का उपन्यास ‘महुआचरित’ जीवन के अपार अरण्य में भटकती इच्छाओं का आख्यान है। मध्यवर्गीय समाज की सच्चाइयों को लेखक ने विशिष्ट कथा-रस के साथ प्रकट किया है। यह उपन्यास जिस शिल्प में अभिव्यक्त हुआ है, वह कथा-संसार में एक नया प्रस्थान निर्मित करता है। छोटे-बड़े किंचित् असमाप्त अपूर्ण वाक्य संकेतों की ओर उन्मुख विवरण और बहुअर्थी बिम्ब इस रचना को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। महुआ की सहेली है उसके मकान की छत जहाँ वह खुलती, खिलती और खेलती है। यह कल्पना ही अपने आपमें अनूठी और व्यंजक है।
कहना न होगा कि ‘महुआचरित’ को ‘वृत्तान्त का अन्त’ करती कथा-रचना के रूप में रेखांकित किया जा सकता है।
अस्सी साल के स्वतंत्रता सेनानी पिता की पुत्री महुआ की देहासक्ति से विवाह तक की यात्रा और फिर उसमें जागता अस्मिता-बोध—इस कथा को लेखक ने समुचित सामाजिक सन्दर्भों के साथ प्रस्तुत किया है। स्त्री-विमर्श की अनुगूँज के बावजूद यह प्रश्न आकार लेता है, ‘ऐसा क्या है देह में कि उसका तो कुछ नहीं बिगड़ता/लेकिन मन का सारा रिश्ता-नाता तहस-नहस हो जाता है।’
सघन संवेदना और सर्वथा नवीन संरचना से समृद्ध ‘महुआचरित’ उपन्यास निश्चित रूप से पाठकों की आत्मीयता अर्जित करेगा।
https://rajkamalprakashan.com/mahuacharit.html
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