Baimani ki parat = बेईमानी की परत
Publication details: Vani Prakashan, 2016. New Delhi:Description: 128p.; hbk; 18cmISBN:- 9789350002674
- 891.43471 PAR
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43471 PAR (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032344 |
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891.43471 DIN Rashtrabhasha aur rashtriya ekta = राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता | 891.43471 DIN Bhartiya ekta = भारतीय एकता | 891.43471 MEH Hum aniketan = हम अनिकेतन | 891.43471 PAR Baimani ki parat = बेईमानी की परत | 891.43471 PAR Mati kahe kumhar se = माटी कहे कुम्हार से | 891.43471 SIN Kuchh aur gadya rachanayen = कुछ और गद्य रचनाएं | 891.434900 BAL Hindi sahitya ka aadhunik itihas = हिन्दी साहित्य का आधुनिक इतिहास |
कोई भी विचार तभी अस्तिव में आता है जब वह वाणी ग्रहण करता है। प्रत्येक शब्द के पीछे एक विचार होता है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, सही या गलत, विभिन्न अर्थों में और विषयों में, ध्वनियों और गंधों में एक शब्द अपने में हमारी तमाम भावनाओं को सम्मोहित करने की क्षमता रखता है। साहित्यिक भाषा विचार-बहन का एक सशक्त माध्यम है। इसलिए शायद लेखक लेखकीय सम्पूर्णता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है। एक व्यंग्यकार तो अपनी सामाजिक समझ, जिम्मेदारी और अपने आम आदमी के साथ खड़े होने की तैयारी में दूसरे लेखकों से अधिक सतर्क, दृष्टिवान और योद्धा होता है।
परसाई जी के लेखन में इस गम्भीर चुनौती का सफलतापूर्वक सामना हुआ है। एक ओर जहाँ शैली की विविधता और पुराने मिथकों और पौराणिक पात्रों का नये सन्दर्भो और समसामयिक परिस्थितियों में सोश्य एवं सफल प्रयोग हुआ है, वहीं पाठक की रुचियों से स्त्री, नौकर की स्थितियों से उत्पन्न होनेवाले भौंडे हास्य-व्यंग्य को स्थापित किया गया है। वैसे परसाई जी के व्यंग्य की शिष्टता का सम्बन्ध उच्चवर्गीय मनोरंजन से न होकर समाज में सर्वहारा की उस लड़ाई से अधिक है जो आगे जाकर मनुष्य की मुक्ति में जुड़ती है।
https://www.amazon.in/Baimani-Kee-Parat-Harishankar-Parsai/dp/9350002671
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