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Premchand ke phate joote = प्रेमचंद के फटे जूते

By: Contributor(s): Publication details: New Delhi: Bharatiya Jnanapith, 2023.Edition: 13th edDescription: 323p.: hbk: 22cmISBN:
  • 9789355183767
Subject(s): DDC classification:
  • 891.437  PAR
Summary: हिन्दी साहित्य के शिखर हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाएँ स्वतंत्र भारत का असली चेहरा हैं। परसाई ने बाजार के सुरसापन को अपनी सशक्त लेखनी से भरसक निस्तेज करने का प्रयास किया है। आज परसाई जीवित होते तो पचास साल के दर्पण में जितने भव्य और रंगीन चित्र दिख रहे हैं या दिखाये जा रहे हैं उनका अस्तित्व ही न होता और कुछ दूसरे ही भयावह चित्र हमारे सामने जीवित होते। आजादी के बाद इस देश की जनता को एक के बाद एक अनेक मिथकों ने लील लिया। अभागी जनता बार-बार छली जाती रही। इस पृष्ठभूमि में परसाई जी की रचनाओं को देखने पर पता चलेगा कि वे स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज को गढऩे और तोडऩेवाली सारी घटनाओं को तीव्रता से देख रहे थे। वे भीतरी पोल को समझ रहे थे। वे कूट करिश्मों से अवगत थे। वे चैतन्य और स्फूर्त थे। उनके लेखक ने कभी धोखा नहीं खाया। उनके जैसा रचनात्मक जोखिम उठानेवाले लेखक समकालीन समाज में बिरले थे। ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक से यह प्रतिष्ठित कथाकार ज्ञानरंजन द्वारा सम्पादित हरिशंकर परसाई की प्रतिनिधि रचनाओं का संचयन है। इन रचनाओं में परसाई ने अपने युग के समाज का, उसकी बहुविध विसंगतियों, अन्तर्विरोधों और मिथ्याचारों का उद्घाटन किया है। इन रचनाओं में हँसी से बढक़र जीवन की तीखी आलोचना है। http://jnanpith.net/book_detail.html?id=46
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Hindi Books Hindi Books IIT Gandhinagar General 891.437 PAR (Browse shelf(Opens below)) 1 Available 033165

हिन्दी साहित्य के शिखर हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाएँ स्वतंत्र भारत का असली चेहरा हैं। परसाई ने बाजार के सुरसापन को अपनी सशक्त लेखनी से भरसक निस्तेज करने का प्रयास किया है। आज परसाई जीवित होते तो पचास साल के दर्पण में जितने भव्य और रंगीन चित्र दिख रहे हैं या दिखाये जा रहे हैं उनका अस्तित्व ही न होता और कुछ दूसरे ही भयावह चित्र हमारे सामने जीवित होते। आजादी के बाद इस देश की जनता को एक के बाद एक अनेक मिथकों ने लील लिया। अभागी जनता बार-बार छली जाती रही। इस पृष्ठभूमि में परसाई जी की रचनाओं को देखने पर पता चलेगा कि वे स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज को गढऩे और तोडऩेवाली सारी घटनाओं को तीव्रता से देख रहे थे। वे भीतरी पोल को समझ रहे थे। वे कूट करिश्मों से अवगत थे। वे चैतन्य और स्फूर्त थे। उनके लेखक ने कभी धोखा नहीं खाया। उनके जैसा रचनात्मक जोखिम उठानेवाले लेखक समकालीन समाज में बिरले थे। ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक से यह प्रतिष्ठित कथाकार ज्ञानरंजन द्वारा सम्पादित हरिशंकर परसाई की प्रतिनिधि रचनाओं का संचयन है। इन रचनाओं में परसाई ने अपने युग के समाज का, उसकी बहुविध विसंगतियों, अन्तर्विरोधों और मिथ्याचारों का उद्घाटन किया है। इन रचनाओं में हँसी से बढक़र जीवन की तीखी आलोचना है।

http://jnanpith.net/book_detail.html?id=46

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