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Tat ki khoj = तट की खोज

By: Publication details: Vani Prakashan, 2019. New Delhi:Description: 107p.; pbk; 18cmISBN:
  • 9789350000571
Subject(s): DDC classification:
  • 891.433 PAR
Summary: एक दिन किसी विवाह के इच्छुक वर के पिता मुझे देखने आये। आशा और निराशा के बीच झूलते पिताजी तीन दिन से घर की तैयारी कर रहे थे। मकान की सफाई की गई, सजावट की गई, साथ ही मुझे भी सजाया गया। ऐसे अवसर पर घर में किसी वृद्धा का होना आवश्यक है. इसलिए मेरी एक दूर के रिश्ते की फूफी को तीन दिन के लिए इस घर में बसाया गया। मेरी परीक्षा का दिन आया। सबेरे से घर में बड़ी हलचल मच गई। वृद्धा फूफी ने मेरा श्रृंगार किया और मुझे उन लोगों के सामने कैसे चलना चाहिए, कैसे बात करनी चाहिए, यह सब सिखाया गया। कुछ मामला ऐसा था जैसे मदारी बन्दर को नाना प्रकार के हाव भाव सिखाए, ताकि वह दर्शकों को प्रसन्न कर सके। जब वे लोग भोजन करने बैठे तो पिताजी ने यह बताते हुए कि यह पकवान मेरे ही बनाए हुए हैं, मेरी पाक विद्या की प्रशंसा की, उन्होंने टेबिलक्लाथ की ओर देखा तो उन्होंने बताया कि यह मेरी कला है। द्वार की झालरों की ओर उनकी दृष्टि गई तो उनसे तुरन्त कहा गया कि वह भी मेरी ही कला है। कोने में रखा हुआ सितार ऐसी जगह रख दिया गया कि जहाँ उनकी दृष्टि उस पर सहज पड़ जावे और उन्हें यह विदित हो जावे कि मैं गान विद्या में भी निपुण हूँ। https://www.amazon.in/Tat-Ki-Khoj-Harishankar-Parsai/dp/9350000571
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एक दिन किसी विवाह के इच्छुक वर के पिता मुझे देखने आये। आशा और निराशा के बीच झूलते पिताजी तीन दिन से घर की तैयारी कर रहे थे। मकान की सफाई की गई, सजावट की गई, साथ ही मुझे भी सजाया गया। ऐसे अवसर पर घर में किसी वृद्धा का होना आवश्यक है. इसलिए मेरी एक दूर के रिश्ते की फूफी को तीन दिन के लिए इस घर में बसाया गया। मेरी परीक्षा का दिन आया। सबेरे से घर में बड़ी हलचल मच गई। वृद्धा फूफी ने मेरा श्रृंगार किया और मुझे उन लोगों के सामने कैसे चलना चाहिए, कैसे बात करनी चाहिए, यह सब सिखाया गया। कुछ मामला ऐसा था जैसे मदारी बन्दर को नाना प्रकार के हाव भाव सिखाए, ताकि वह दर्शकों को प्रसन्न कर सके। जब वे लोग भोजन करने बैठे तो पिताजी ने यह बताते हुए कि यह पकवान मेरे ही बनाए हुए हैं, मेरी पाक विद्या की प्रशंसा की, उन्होंने टेबिलक्लाथ की ओर देखा तो उन्होंने बताया कि यह मेरी कला है। द्वार की झालरों की ओर उनकी दृष्टि गई तो उनसे तुरन्त कहा गया कि वह भी मेरी ही कला है। कोने में रखा हुआ सितार ऐसी जगह रख दिया गया कि जहाँ उनकी दृष्टि उस पर सहज पड़ जावे और उन्हें यह विदित हो जावे कि मैं गान विद्या में भी निपुण हूँ।

https://www.amazon.in/Tat-Ki-Khoj-Harishankar-Parsai/dp/9350000571

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