Anushtup = अनुष्टुप
Publication details: Vani Prakashan, 2019. New Delhi:Description: 152p.; pbk; 21cmISBN:- 9789389563030
- 891.43371 ANA
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 ANA (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032337 |
ज्ञान की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आप जिस संज्ञान तक पहुँचते हैं, शब्दों की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जिस गहन मौन तक, मेरा अकेलापन आपके अकेलेपन से जहाँ रू-ब-रू होता है, कविता वहीं एक चटाई-सी बिछाती है कि पदानुक्रम टूट जायें, भेद-भाव की सारी संरचनाएँ टूट जायें, एक धरातल पर आ बैठे दुनिया के सारे ध्रुवान्त-आपबीती और जगबीती, गरीब-अमीर, स्त्री-पुरुष, श्वेत-अश्वेत, दलित-गैरदलित, देहाती-शहराती, लोक और शास्त्र। कविता के केन्द्रीय औज़ार-रूपक और उत्प्रेक्षा भेदभाव की सारी संरचनाएँ तोड़ते हुए एक झप्पी-सी घटित करते हैं-मैक्रो-माइक्रो, घरेलू और दूरस्थ वस्तुजगत के बीच। सहकारिता के दर्शन में कविता के गहरे विश्वास का एक प्रमाण यह भी है कि जहाँ रूपक न भी फूटें, वहाँ नाटक से संवाद, कथाजगत से चरित्र और वृत्तान्त वह उसी हक़ से उठा लाती है, जिस हक़ से हम बचपन में पड़ोस के घर से जामन उठा लाते थे। जामन कहीं से आता है, दही कहीं जम जाता है। यह है बहनापा, जनतन्त्र का अधिक आत्मीय, मासूम चेहरा जो कविता का अपना चेहरा है।
https://www.amazon.in/Anushtup-Anamika/dp/B0811SW6H1
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