Tokri mein digant: theri gatha: 2014 = टोकरी में दिगन्त: थेरी गाथा : 2014
Publication details: New Delhi: Rajkamal Prakashan, 2022.Edition: 2nd edDescription: 182p.: pbk: 19cmISBN:- 9789390971473
- 891.43171 ANA
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43171 ANA (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 033152 |
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891.4317 PAN Sumitranandan Pant granthavali: Vols. 1-7 = सुमित्रानंदन पंत ग्रन्थावली: खंड 1-7 | 891.4317 PAN Sumitranandan Pant granthavali: Vols. 1-7 = सुमित्रानंदन पंत ग्रन्थावली: खंड 1-7 | 891.4317 VER Nirja = नीरजा | 891.43171 ANA Tokri mein digant: theri gatha: 2014 = टोकरी में दिगन्त: थेरी गाथा : 2014 | 891.43171 DEV Patthar ki bench = पत्थर की बेंच | 891.43171 DIN Kavishree = कविश्री | 891.43171 DIN Koyla aur kavitwa = कोयला और कवित्व |
अनामिका के नए संग्रह ‘टोकरी में दिगन्त—थेरी गाथा : 2014’ को पूरा पढ़ जाने के बाद मेरे मन पर जो पहला प्रभाव पड़ा, वो यह कि यह पूरी काव्य-कृति एक लम्बी कविता है, जिसमें अनेक छोटे-छोटे दृश्य, प्रसंग और थेरियों के रूपक में लिपटी हुई हमारे समय की सामान्य स्त्रियाँ आती हैं। संग्रह के नाम में 2014 का जो तिथि-संकेत दिया गया है, मुझे लगता है कि पूरे संग्रह का बलाघात थेरी गाथा के बजाय इस समय-सन्दर्भ पर ही है। संग्रह के शुरू में एक छोटी-सी भूमिका है, जिसे कविताओं के साथ जोड़कर देखना चाहिए। बुद्ध अनेक कविताओं के केन्द्र में हैं, जो बार-बार प्रश्नांकित भी होते हैं और बेशक एक रोशनी के रूप में स्वीकार्य भी। इस नए संकलन में अनेक उद्धरणीय काव्यांश या पंक्तियाँ मिल सकती हैं, जो पाठक के मन में टिकी रह जाती हैं।
बिना किसी तार्किक संयोजन के यह पूरा संग्रह एक ऐसे काव्य-फलक की तरह है, जिसके अन्त को खुला छोड़ दिया गया है। स्वयं इसकी रचयिता के अनुसार “वर्तमान और अतीत, इतिहास और किंवदन्तियाँ, कल्पना और यथार्थ यहाँ साथ-साथ घुमरी परैया-सा नाचते दीख सकते हैं।” आज के स्त्री-लेखन की सुपरिचित धारा से अलग यह एक नई कल्पनात्मक सृष्टि है, जो अपनी पंक्तियों को पाठक पर बलात् थोपने के बजाय उससे बोलती-बतियाती है, और ऐसा करते हुए वह चुपके से अपना आशय भी उसकी स्मृति में दर्ज करा देती है। शायद यह एक नई काव्य-विधा है, जिसकी ओर काव्य-प्रेमियों का ध्यान जाएगा। समकालीन कविता के एक पाठक के रूप में मुझे लगा कि यह काव्य-कृति एक नई काव्य-भाषा की प्रस्तावना है, जो व्यंजना के कई बन्द पड़े दरवाज़ों को खोलती है और यह सब कुछ घटित होता है एक स्थानीय केन्द्र के चारों ओर। कविता की जानी-पहचानी दुनिया में यह सबाल्टर्न भावबोध का हस्तक्षेप है, जो अलक्षित नहीं जाएगा।
—केदारनाथ सिंह
https://rajkamalprakashan.com/tokri-mein-digant.html
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