Aranya = अरण्या
Publication details: Lokbharti Prakashan, 2012. Allahabad:Description: 96p.; hbk; 23cmISBN:- 9788180317156
- 891.43371 MEH
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 MEH (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032100 |
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891.43371 MEH Mahaprashthan = महाप्रस्थान | 891.43371 MEH Pravad parva = प्रवाद पर्व | 891.43371 MEH Sanshay ki ek raat = संशय की एक रात | 891.43371 MEH Aranya = अरण्या | 891.43371 MIS Trikal sandhya = त्रिकाल संध्या | 891.43371 MIS Parivarthan jiye = परिवर्तन जीये | 891.43371 MIS Kaljayee = कालजयी |
Includes author introduction
काव्य का स्थान समस्त वैचारिक सत्ता में न केवल सर्वोपरि है, बल्कि अपनी भाववाची सृजनात्मक प्रकृति के कारण परमपद भी कहा जा सकता है। अन्य वैचारिक सत्ताएँ, भले ही वे धर्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान या अध्यात्म की ही क्यों न हों, भाववाची सृजनात्मक न होने के कारण किसी-न-किसी कारण से सीमाएँ हैं। इस अर्थ में काव्य ही एकमात्र निर्दोष सत्ता है। वैचारिक विराटता जब सृजनात्मक और संकल्पात्मक होती है, तब उस ऋतम्भरा मधुमती-भूमिका की प्रतीति सम्भव है जिसके लिए धर्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान या अध्यात्म विभिन्न माध्यम और मार्ग सुझाते हैं। सामान्यत: तो प्रयोजन एक ही है, अत: काव्य का भी प्रयोजन है कि मनुष्य मात्र को उसके भीतर जो अनभिव्यक्त ‘पुरुष’ है (जिसे दर्शन ‘योगमाया-सुप्त’ की संज्ञा देता है) उसको रूपायित तथा संचरित किया जाए, साथ ही जितनी भी पदार्थिक सत्ताएँ हैं, उनको उनके महत् रूप ‘प्रकृति’ के साथ तदाकृत किया
जाए।
राम और सूर्य के बीच यह गायत्री-छन्द ही अनाहूत भाव से शब्द-यज्ञ कर रहा है। जब तक यह काव्य का शब्द-यज्ञ सम्पन्न होता रहेगा तब तक यह सृष्टि पुरुष और प्रकृति की मिथुन मूर्ति बनकर लीला करती रहेगी। अत: हम चाहें तो कह सकते हैं कि समस्त जैविकता के लिए किए गए शब्द-यज्ञ का नाम ही काव्य है।
वैसे ‘यज्ञ’ शब्द से चौंकने की कोई आवश्यकता नहीं है। शब्द का उच्चरित होना ही यज्ञ है। किसी भी काल, किसी भी देश और किसी भी भाषा की कविता हमारे न जानने और न चाहने पर भी शब्द-यज्ञ ही कर रही है।
सृष्टि में जो कुछ भी तथा जैसा कुछ भी अथवा जिस किसी रूप में है, वह काव्य है। विराट् में जिस प्रकार पंक्ति-पावनता नहीं है क्योंकि वह अपांक्तेय है, इसलिए काव्य भी अपांक्तेय है और, इसलिए कवि को भी अपांक्तेय होना होगा।
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