Sanshay ki ek raat = संशय की एक रात
Publication details: Lokbharti Prakashan, 2012. Allahabad:Description: 85p.; hbk; 22cmISBN:- 9788180316753
- 891.43371 MEH
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 MEH (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032089 |
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891.43371 MEH Shabri = शबरी | 891.43371 MEH Mahaprashthan = महाप्रस्थान | 891.43371 MEH Pravad parva = प्रवाद पर्व | 891.43371 MEH Sanshay ki ek raat = संशय की एक रात | 891.43371 MEH Aranya = अरण्या | 891.43371 MIS Trikal sandhya = त्रिकाल संध्या | 891.43371 MIS Parivarthan jiye = परिवर्तन जीये |
Includes author introduction
‘संशय की एक रात’ में कवि ने राम के भीतर युद्ध के प्रति संशय पैदा कर एक आधुनिक मनुष्य की चिन्ता प्रकट की है, राम के चरित्र की पुनर्रचना की है, जिसकी सम्भावना राम के चरित्र में है और निश्चय ही यह कृति हिन्दी साहित्य की उपलब्धि है।
नरेश जी की दृष्टि में राम सनातन प्रज्ञा-पुरुष है, ऐसा पुरुष स्वयं तो इतिहास मुक्त होता है, पर इतिहास किसे मुक्त करता है? क्योंकि इतिहास किसी की व्यक्तिगत निर्मिति नहीं है। फिर भी वह अपने प्रश्नों का उत्तर हर युग में प्रज्ञा-पुरुष से माँगता है, यही अभूतपूर्व संकट नरेश मेहता के राम के सामने है, जो न वाल्मीकि के राम के सामने था, न तुलसी या अन्य कवि के राम के सम्मुख।
राम के सामने संशय यह है कि सीता के लिए युद्ध करना सार्वत्रिक है या व्यक्तिगत? क्योंकि राम व्यक्तिगत युद्ध में सेना को, प्रजा को झोंकना नहीं चाहते। संशय राम का है, पर उत्तर उन्हें अकेले नहीं देना है, इतिहास-निर्माता के जो घटक हैं, उन्हें मिलकर समाधान निकालना है जिनमें से प्रत्येक इस प्रश्न के भीतर से अपना अर्थ खोजता है।
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