Sampoorna kavitayen: Shrinaresh Mehta Vol. (1-2) = सम्पूर्ण कविताएँ: श्रीनरेश मेहता (1-2)
Publication details: Lokbharti Prakashan, 2017. Allahabad:Description: 452p.; hbk; 22cmISBN:- 9789352211401
- 891.43371 MEH
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Notes | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.43371 MEH (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 1 | 032085 | |
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.43371 MEH (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | Vol. 2 | 032086 |
Browsing IIT Gandhinagar shelves, Collection: General Close shelf browser (Hides shelf browser)
No cover image available |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
||
891.43371 KUM Saaye mein dhoop = साये में धूप | 891.43371 KUM Surya ka swagat = सूर्य का स्वागत | 891.43371 MEH Sampoorna kavitayen: Shrinaresh Mehta Vol. (1-2) = सम्पूर्ण कविताएँ: श्रीनरेश मेहता (1-2) | 891.43371 MEH Sampoorna kavitayen: Shrinaresh Mehta Vol. (1-2) = सम्पूर्ण कविताएँ: श्रीनरेश मेहता (1-2) | 891.43371 MEH Shabri = शबरी | 891.43371 MEH Mahaprashthan = महाप्रस्थान | 891.43371 MEH Pravad parva = प्रवाद पर्व |
Includes authors introduction
मनुष्य के भीतर जो नाना प्रकार के राग-विराग हैं, उनके बीच जब वह अपने अन्तस् में झाँकता है, उसे एक भारहीन दिगन्तव्यापी सौन्दर्य-चेतना का साक्षात्कार होता है। एक कवि अपनी काव्य-यात्रा में अपने अन्तस् की उस हिरण्यमयी सच्चाई को साक्षात्कृत करता है। सारी करुणताएँ उसकी दृष्टिक्षेत्र के बाहर चली जाती हैं। केवल सौन्दर्य, केवल मंगल, केवल प्रार्थना का ही अहसास बचा रहता है।
श्रीनरेश मेहता की काव्य-दृष्टि में प्रकृति को एक उदात्त रूप में ग्रहण किया गया है। प्रकृति उनकी समूची संस्कृति में एक केन्द्रीय सत्ता बनकर नई क्रान्ति और नया संस्कार प्रदान करती है। प्रकृति से इस प्रकार का साक्षात्कार पुरुष को अपने विकारों से मुक्त कराता है।
श्रीनरेश मेहता की कविताओं में हमें कवि की दृष्टि प्रकृति और पुरुष के उदात्त रूप पर ही गड़ी दिखती है। उनके यहाँ प्रतिस्पर्द्धा के स्थान पर आत्मदान का महत्त्व है। केवल धृति नहीं है, वह उल्लास है, सृजन है, आह्लाद है और एक निरन्तर जीवन्तता है। उसमें संकोच, तिरस्कार या अस्वीकृति नहीं है। वह मनुष्य को एक नव्य मानवीय संस्कार देती है। वह मनुष्य के भीतर जो आसुरी वृत्तियाँ हैं, उन्हें दैवी वृत्तियों में बदलती चलती है।
प्रस्तुत पुस्तक में श्रीनरेश मेहता की अद्यतन कृतियाँ सम्मिलित कर ली गई हैं, जो पूर्व प्रकाशित पुस्तक ‘समिधा’ में नहीं थीं।
https://rajkamalprakashan.com/sampoorna-kavitayen-shrinaresh-mehta-vol-1-2.html
There are no comments on this title.