Kavyatmakata ka dikkal = काव्यात्मकता का दिक्काल
Publication details: Radhakrishna Prakashan, 2013. New Delhi:Description: 99p.; hbk; 23cmISBN:- 9788171190287
- 891.43009 MEH
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43009 MEH (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032083 |
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891.43009 MEG Madhyayugin ras darshan aur samkalin soundaryabodh = मध्ययुग रास दर्शन और समकालीन सौन्दर्यबोध | 891.43009 MEG Manav-deh aur hamari deh-bhashayen = मानव देह और हमारी देह भाषाएँ | 891.43009 MEG Mithak se aadhunikta tak = मिथक से आधुनिकता तक | 891.43009 MEH Kavyatmakata ka dikkal = काव्यात्मकता का दिक्काल | 891.43009 MEH Muktibodh: ek avdhut kavita = मुक्तिबोध: एक अवधूत कविता | 891.43009 MEH Shabd purush Agyey = शब्द-पुरुष अज्ञेय | 891.43009 MIS Kuch neeti kuch rajneeti = कुछ नीति कुछ राजनीति |
Includes authors introduction
काव्य पर विचार करना बहुत आसान भी हो सकता है और कठिन भी। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम किस अयन में खड़े होकर काव्य को देख रहे हैं तथा उसके साथ हमारा अक्षांश-देशान्तर क्या है। यदि काव्य हमारे लिए केवल मनोरंजन, या तात्कालिक प्रतिक्रिया, या फतवेबाज़ी है तो काव्य की इस प्रकृति, स्वरूप और सत्ता को जानने में कोई ख़ास परेशानी नहीं होगी, लेकिन यदि वह हमारे लिए एक गम्भीर सृजनात्मक कर्म या रचनात्मक दायित्व तथा सत्ता है जिससे हम ग्रथित हैं तो हमारी जिज्ञासा और पड़ताल का दायरा शायद बहुत अधिक गहन और विशाल होगा।
सृष्ट जीवन को पुन: रचकर काव्य एक प्रतिजीवन बनकर अपनी सृजनात्मक उपस्थिति से जीवन पर देश और काल में प्रश्नचिह्न लगाता चलता है, इसीलिए काव्य का न तो कोई देश होता है और न ही कोई काल। जीवन की सार्वदेशिकता तथा शाश्वतता की तरह ही काव्य भी सार्वदेशिक और शाश्वत होता है।
यदि हम वास्तव में काव्य को जानना चाहते हैं तो सम्भव है, हमें साहित्य की अपनी क्षेत्रीय समझ और वर्तमानवादी आग्रही दृष्टि को विस्तृत करना होगा, अन्यथा वह बाधा बन जाएगी। वैसे सर्वथा अनाग्रही होना तो शायद सम्भव भी नहीं और कुछ होता भी नहीं, फिर भी यदि एक प्रकार का वैचारिक खुलापन देश और काल दोनों स्तरों पर बनाए रख सकें तो हम काव्य की दिशा में बढ़ सकते हैं। यह वैचारिक खुलापन ही कुतुबनुमा का काम करेगा।
इस पुस्तक में मनीषी कवि श्रीनरेश मेहता के उन व्याख्यानों को संकलित किया गया है जो उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ की ‘आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी व्याख्यानमाला’ के तहत दिए थे।
https://rajkamalprakashan.com/kavyatmakata-ka-dikkal.html
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