Agnirekha = अग्निरेखा
Publication details: Rajkamal Prakashan, 2018 New Delhi:Edition: 5th edDescription: 72p. hbk; 20cmISBN:- 9788171789337
- 891.43371 DIN
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 DIN (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032070 |
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891.43371 DIN Shuddha kavita ki khoj = शुद्ध कविता की खोज | 891.43371 DIN Hunkar = हुंकार | 891.43371 DIN Dwandgeet = द्वंद्वगीत | 891.43371 DIN Agnirekha = अग्निरेखा | 891.43371 DIN Parshuram ki pratiksha: dinkar granthmala = परशुराम की प्रतीक्षा: दिनकर ग्रंथमाला | 891.43371 DIN Dinkar ke geet = दिनकर के गीत | 891.43371 FAI Mere dil mere musafir = मेरे दिल मेरे मुसाफिर |
‘अग्निरेखा’ में महादेवीजी की अंतिम दिनों में रची गई कविताएँ संगृहीत हैं, जो पाठकों को अभिभूत भी करेंगी और आश्चर्यचकित भी। आश्चर्यचकित इस अर्थ में कि महादेवी-काव्य में ओतप्रोत वेदना और करुणा का वह स्वर, जो कब से उनकी पहचान बन चुका है, यहाँ एकदम अनुपस्थित है। अपने आपको ‘नीरभरी दुख की बदली’ कहनेवाली महादेवी अब जहाँ ‘ज्वाला के पर्व’ की बात करती हैं वहीं ‘आँधी की राह’ चलने का आह्वान भी। ‘वंशी’ का स्वर अब ‘पांचजन्य’ के स्वर में बदल गया है और ‘हर ध्वंस-लहर में जीवन लहराता’ दिखाई देता है। अपनी काव्य-यात्रा के पहले महत्त्वपूर्ण दौर का समापन करते हुए महादेवीजी ने कहा था - ‘देखकर निज कल्पना साकार होते; और उसमें प्राण का संचार होते। सो गया रख तूलिका दीपक-चितेरा।’ इन पंक्तियों में जीवन-प्रभात की जो अनुभूति है, वही प्रस्तुत कविताओं में ज्वाला बनकर फूट निकली है। अकारण नहीं कि वे गा उठी हैं - ‘इन साँसों को आज जला मैं/लपटों की माला करती हूँ।’ कहना न होगा कि महादेवीजी के इस काव्यताप को अनुभव करते हुए हिन्दी का पाठक-जगत उसके पीछे छुपी उनकी युगीन संवेदना से निश्चय ही अभिभूत होगा।
https://rajkamalprakashan.com/agnirekha.html
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