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Kavya ki bhumika = काव्य की भूमिका

By: Publication details: Lokbharti Prakashan, 2022 Pragyaraj:Description: 174p. hbk; 20cmISBN:
  • 9788180314148
Subject(s): DDC classification:
  • 891.43471 DIN
Summary: रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिन्‍दी के महान कवि तो हैं ही, वे बहुत बड़े निबन्‍ध लेखक भी हैं। उनके निबन्‍ध अपने भाष्‍य में सिर्फ़ पाठ के लिए आकर्षित नहीं करते, बल्कि अपने युग के साहित्‍य, समाज, सभ्‍यता, संस्‍कृति, इतिहास आदि को समझने की वैज्ञानिक दृष्टि भी देते हैं; और इस बात का एक सशक्‍त उदाहरण है यह पुस्‍तक ‘काव्य की भूमिका’। इस संग्रह में दिनकर के ग्यारह विचारोत्तेजक निबन्ध शामिल हैं। ‘रीतिकाल का नया मूल्यांकन’, ‘छायावाद की भूमिका’, ‘छायावादोत्तर काल’, ‘प्रयोगवाद’, ‘कोमलता से कठोरता की ओर’ नामक आरम्भिक निबन्धों में रीतिकाल से लेकर प्रयोगवाद तक की प्रमुख प्रवृत्तियों का विवेचन किया गया है। ‘भविष्य की कविता’ निबन्‍ध में यह समझाने की चेष्टा की गई है कि वैज्ञानिक युग में कविता अपने किन गुणों पर जोर देकर अपना अस्तित्व कायम रख सकती है। ‘कविता ज्ञान है या आनन्द?’, ‘रूपकाव्य और विचारकाव्य’, ‘प्रेरणा का स्वरूप’, ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’, ‘कविता की परख’ निबन्‍ध युवाशक्ति के नाम कवि का सन्‍देश हैं। कविता और काव्य-समीक्षा से सम्बन्धित दो-तीन विचार ऐसे हैं जो दिनकर के अन्‍य निबन्धों में दिख जाते हैं। पुनरावृत्ति का दोष सुधी पाठकों को पहली नज़र में भले ही खटकेगा, लेकिन वे इस तथ्‍य को भी रेखांकित करने से नहीं चूकेंगे कि यहाँ निबन्‍धों की केन्‍द्रीय चेतना में उनकी अपनी एक अलग अनिवार्यता और भूमिका है। उच्चकोटि के साहित्य के विद्यार्थियों तथा काव्य-प्रेमियों के लिए कवि दिनकर की यह कृति एक ऐसी रोशनी की तरह है जिसमें बहुत कुछ अनदेखा देखा जा सकता है, बहुत कुछ अनसुलझा सुलझाया जा सकता है। https://rajkamalprakashan.com/kavya-ki-bhumika.html
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Hindi Books Hindi Books IIT Gandhinagar General 891.43471 DIN (Browse shelf(Opens below)) 1 Available 032067

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिन्‍दी के महान कवि तो हैं ही, वे बहुत बड़े निबन्‍ध लेखक भी हैं। उनके निबन्‍ध अपने भाष्‍य में सिर्फ़ पाठ के लिए आकर्षित नहीं करते, बल्कि अपने युग के साहित्‍य, समाज, सभ्‍यता, संस्‍कृति, इतिहास आदि को समझने की वैज्ञानिक दृष्टि भी देते हैं; और इस बात का एक सशक्‍त उदाहरण है यह पुस्‍तक ‘काव्य की भूमिका’।

इस संग्रह में दिनकर के ग्यारह विचारोत्तेजक निबन्ध शामिल हैं। ‘रीतिकाल का नया मूल्यांकन’, ‘छायावाद की भूमिका’, ‘छायावादोत्तर काल’, ‘प्रयोगवाद’, ‘कोमलता से कठोरता की ओर’ नामक आरम्भिक निबन्धों में रीतिकाल से लेकर प्रयोगवाद तक की प्रमुख प्रवृत्तियों का विवेचन किया गया है। ‘भविष्य की कविता’ निबन्‍ध में यह समझाने की चेष्टा की गई है कि वैज्ञानिक युग में कविता अपने किन गुणों पर जोर देकर अपना अस्तित्व कायम रख सकती है। ‘कविता ज्ञान है या आनन्द?’, ‘रूपकाव्य और विचारकाव्य’, ‘प्रेरणा का स्वरूप’, ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’, ‘कविता की परख’ निबन्‍ध युवाशक्ति के नाम कवि का सन्‍देश हैं।

कविता और काव्य-समीक्षा से सम्बन्धित दो-तीन विचार ऐसे हैं जो दिनकर के अन्‍य निबन्धों में दिख जाते हैं। पुनरावृत्ति का दोष सुधी पाठकों को पहली नज़र में भले ही खटकेगा, लेकिन वे इस तथ्‍य को भी रेखांकित करने से नहीं चूकेंगे कि यहाँ निबन्‍धों की केन्‍द्रीय चेतना में उनकी अपनी एक अलग अनिवार्यता और भूमिका है।

उच्चकोटि के साहित्य के विद्यार्थियों तथा काव्य-प्रेमियों के लिए कवि दिनकर की यह कृति एक ऐसी रोशनी की तरह है जिसमें बहुत कुछ अनदेखा देखा जा सकता है, बहुत कुछ अनसुलझा सुलझाया जा सकता है।

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