Hare ko Harinaam=हारे को हरिनाम
Publication details: Prayagraj: Lokbharti prakshan, 2023.Description: 167p.: pbk.: 22cmISBN:- 9789389243093
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.431 DIN (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 033711 |
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891.4309 YAD Uttar adhunikta ki prishth bhumi kuch vichar, kuch prashn = उत्तर आधुनिकता की पृष्ठभूमि कुछ विचार, कुछ प्रश्न | 891.43092 VER Kahi na jay ka kahie=कहि न जाय का कहिए | 891.431 BHA Sapna abhi bhi=सपना अभी भी | 891.431 DIN Hare ko Harinaam=हारे को हरिनाम | 891.431 GUL Poem a day : 365 contemporary poems 34 languages 279 poets | 891.431 GUL Boli rangoli=बोली रंगोली | 891.431 GUL Duniya meri=दुनिया मेरी |
‘केवल कवि ही कविता नहीं रचता, कविता भी बदले में कवि की रचना करती है' जैसी अनुभूति को आत्मसात् करनेवाले दिनकर की विचारप्रधान कविताओं का संकलन है 'हारे को हरिनाम', जिसमें उनके जीवन के उत्तरार्द्ध की दार्शनिक मानसिकता के दर्शन होते हैं। इसमें परम सत्ता के प्रति छलहीन समर्पण की आकुलता से भरी ऐसी कविताओं की अभिव्यक्ति हुई है जिनमें मनुष्य मन की विराटता है। हम कह सकते हैं कि ओज और आक्रोश से भरी राष्ट्रीय कविताओं के सर्जक दिनकर की भक्ति-भावनाओं से विह्वल रचनाओं का यह संग्रह संवेदना और आस्था के विरल आयामों से जोड़ने का एक सफल उपक्रम है।
और संग्रह का नाम ‘हारे को हरिनाम’ से कुछ मित्रों के चौंकने पर सच स्वीकार करने की साहस-भरी वह मनुष्यता भी, जिसे राष्ट्रकवि दिनकर अपने इन शब्दों में व्यक्त करते हैं–“...किन्तु पराजित मनुष्य और किसका नाम ले?
मैंने अपने आपको
क्षमा कर दिया है।
बन्धु, तुम भी मुझे क्षमा करो।
मुमकिन है, वह ताज़गी हो।
जिसे तुम थकान मानते हो।
ईश्वर की इच्छा को
न मैं जानता हूँ,
न तुम जानते हो।”
https://rajkamalprakashan.com/hare-ko-harinaam.html
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