Rashtrabhasha aur rashtriya ekta = राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता
Publication details: Lokbharti Paperbacks, 2019. Allahabad:Description: 119p.: pbk: 20cmISBN:- 9789389243796
- 891.43471 DIN
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
IIT Gandhinagar | General | 891.43471 DIN (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032776 |
Browsing IIT Gandhinagar shelves, Collection: General Close shelf browser (Hides shelf browser)
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
||
891.43471 DIN Vivah ki museebaten = विवाह की मुसीबतें | 891.43471 DIN Mitti ki oar = मिट्टी की ओर | 891.43471 DIN Kavya ki bhumika = काव्य की भूमिका | 891.43471 DIN Rashtrabhasha aur rashtriya ekta = राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता | 891.43471 DIN Bhartiya ekta = भारतीय एकता | 891.43471 MEH Hum aniketan = हम अनिकेतन | 891.43471 PAR Baimani ki parat = बेईमानी की परत |
जातियों का सांस्कृतिक विनाश तब होता है जब वे अपनी परम्पराओं को भूलकर दूसरों की परम्पराओं का अनुकरण करने लगती हैं। इस सांस्कृतिक दासता का भयानक रूप वह होता है, जब कोई जाति अपनी भाषा को छोड़कर दूसरों की भाषा अपना लेती है। फल यह होता है कि वह जाति अपना व्यक्तित्व खो बैठती है। उसके स्वाभिमान का विनाश हो जाता है!' स्वाधीनता के सात वर्ष बाद राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा दी गई यह गम्भीर चेतावनी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस समय थी। दिनकर जी एक समर्थ कवि और ओजस्वी वक्ता ही नहीं, प्रखर चिन्तक भी थे। इस संग्रह में जो विचारोत्तेजक, सारगर्भित भाषण और लेख संगृहीत हैं, वे इस बात के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। 'राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता' पुस्तक जिसका विषय प्राय: भाषा और संस्कृति है, देश की ज्वलन्त समस्याओं के प्रति दिनकर जैसे एक साहित्यकार का न दृष्टिकोण भी है। संस्कृति की रचना और अभिव्यक्ति कला के माध्यम से होती है और भारतीय कला का यह स्वाभाव है कि वह यूरोप की कलात्मक भंगिमाओं से सामंजस्य नहीं बिठा सकती । बहुत प्राचीन काल में, यूनानी कला का सम्मिश्रण भारतीय कला से हुआ था । परिणामस्वरुप, गांधार-कला का जन्म हुआ । किन्तु वह भारत में टिक नहीं सकी, क्योंकि वह अभारतीय थी, क्योकि भारत की आत्मा अपने को इस मिश्रित कला के भीतर से व्यक्त नहीं कर सकती थी ।.
https://rajkamalprakashan.com/catalogsearch/result/?q=Ek+tha+kalakar
There are no comments on this title.