Gunjan = गुंजन
Publication details: Lokbharati prakashan, 1932. Allahabad:Description: 84p.: hbk: 22cmISBN:- 9788180318122
- 891.43371 PAN
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.43371 PAN (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032780 |
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891.43371 NAR Pratinidhi kavitayein: Badri Narayan = प्रतिनिधि कवितायें: बद्री नारायण | 891.43371 NAR Sach sune kai din huye = सच सुने कई दिन हुए | 891.43371 PAN Gramya = ग्राम्या | 891.43371 PAN Gunjan = गुंजन | 891.43371 PRA Aansoo = आँसू | 891.43371 PRA Lahar = लहर | 891.43371 PRA Kamayani (upanyas) = कामायनी (उपन्यास ) |
प्रस्तुत पुस्तक पाठकों के सामने है। इसमें सभी तरह की कविताओं का समावेश है; कुछ नवीन प्रयत्न भी। सुविधा के लिए प्रत्येक पद्य के नीचे रचना-काल दे दिया है। यदि 'गुंजन' मेरे पाठकों का मनोरंजन कर सका, तो मुझे प्रसन्नता होगी, न कर सका तो आश्चर्य न होगा, यह मेरे प्राणों की उन्मन गुंजन मात्र है। ‘मेंहदी’ में दूसरे वर्ण पर स्वरपात मधुर लगता है। तब यह शब्द चार ही मात्राओं का रह जाता है, जैसा कि साधारणत: उच्चरित भी होता है। प्रिय प्रियाऽह्लाद से 'प्रिय प्रि'-'आह्लाद' अच्छा लगता है। इस प्रकार की स्वतंत्रता मैंने कहीं-कहीं ली है। ‘अनिर्वचनीय’ के स्थान पर ‘अनिर्वच’, ‘हरसिंगार’ के स्थान पर ‘सिंगार’ आदि। ‘पल्लव’ की कविताओं में मुझे ‘सा’ के बाहुल्य ने लुभाया था। ‘गुंजन’ में ‘र’ की पुनरुक्ति का मोह मैं नहीं छोड़ सका। ‘सा’ से, जो मेरी वाणी का संवादी स्वर एकदम ‘रे’ हो गया है, यह उन्नति का क्रम संगीत-प्रेमी पाठकों को खटकेगा नहीं, ऐसा मुझे विश्वास है।
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