Gramsevika = ग्रामसेविका
Publication details: Rajkamal Prakashan, 2015 New Delhi:Edition: Revised edDescription: 135p. pbk; 20cmISBN:- 9788126716319
- 891.433 AMA
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.433 AMA (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032020 |
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891.433 AMA Inhi hatiyaron se = इन्हीं हथियारों से | 891.433 AMA Beech ki deewar = बीच की दीवार | 891.433 AMA Sunner Pande ki patoh = सुन्नर पांडे की पतोह | 891.433 AMA Gramsevika = ग्रामसेविका | 891.433 AMA Kale-ujale din = काले उजले दिन | 891.433 ANA Aaina saaz = आईना साज़ | 891.433 ANA Dus dware ka pinjra = दस द्वारे का पिंजरा |
मयन्ती के दिल में एक आग जल रही थी। वह साहस, संघर्ष और कर्मठता का जीवन अपनाकर अपने दु:ख, निराशा और अपमान का बदला उस व्यक्ति से लेना चाहती थी, जिसने दहेज के लालच में उसे ठुकरा दिया था।
उस दिन वह ख़ुशी से चहक उठी, जब उसे नियुक्ति-पत्र मिला। उसकी ख़ुशी का एक यह भी कारण था कि उसे गाँव की औरतों की सेवा करने का मौक़ा मिला था। जब पढ़ती थी, तो उसकी यह इच्छा रही थी कि वह अपने देश के लिए, समाज के लिए कुछ करे। आज उसका सपना साकार होने चला था।
परन्तु गाँव में जाकर उसे कितना कटु अनुभव हुआ था!
उस गाँव में न कोई स्कूल था और न ही अस्पताल। रूढ़िवादी संस्कारों और अन्धविश्वासों की गिरफ़्त में छटपटाते लोग थे, जिन्हें पढ़ाई-लिखाई से नफ़रत थी। उनका विश्वास था कि पढ़ाई-लिखाई से ग़रीबी आएगी। भला अपने बच्चों को वे भिखमंगा क्यों बनाएँ? भगवान ने सबको हाथ-पैर दिए हैं। टोकरी बनाकर शहर में बेचो और पेट का गड्ढा भरो।
इस अज्ञानता के कारण गाँव के ग़रीब लोग जहाँ धर्म के ठेकेदारों के क्रिया-कलापों से आक्रान्त थे, वहीं जोंक की तरह ख़ून चूसनेवाले सूदख़ोरों के जुल्मों से उत्पीड़ित भी।
इसके बावजूद दमयन्ती ने हार नहीं मानी। अपने लक्ष्य की राह को प्रशस्त करने की दिशा में जुटी रही—कि अचानक हरिचरन के प्रवेश ने ऐसी उथल-पुथल मचाई कि उसके जीवन की दिशा ही बदल गई।
गाँवों के जीवन पर आधारित अमरकान्त का बेहद संजीदा उपन्यास है : ग्रामसेविका! लेखक ने अपने इस उपन्यास में जहाँ गाँवों के लोगों की मूलभूत समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है, वहीं गाँव के विकास के नाम पर बिचौलियों और सरकारी अधिकारियों की लूट-खसोट को बेबाक़ी से उजागर किया है।
https://rajkamalprakashan.com/gramsevika.html
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