Hum hashmat 4 = हम हश्मत - 4
Publication details: Rajkamal Prakashan, 2019. New Delhi:Description: vol. 4, 162p.; hbk; 23cmISBN:- 9789388753364
- 891.437109 SOB
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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IIT Gandhinagar | General | 891.437109 SOB (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 032001 |
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891.437109 SOB Hum hashmat 1 = हम हश्मत -1 | 891.437109 SOB Hum hashmat 2 = हम हश्मत -2 | 891.437109 SOB Hum hashmat 3 = हम हश्मत - 3 | 891.437109 SOB Hum hashmat 4 = हम हश्मत - 4 | 891.438 AKH Daraspothi = दरसपोथी | 891.438 KUM Ikkisvin sadi ka madhyavarg aur Hindi kahani = इकीसवीं सदी का मध्यवर्ग और हिंदी कहानी | 891.438 MEG Kanpti lou: ikkisavin satti ke liye alochintana=काँपती लौ : इक्कीसवीं शती के लिए आलोचिंतना |
Includes authors introduction
‘हम हशमत’ का यह चौथा भाग है। कृष्णा सोबती ने ‘हशमत’ को सिर्फ़ एक उपनाम की तरह ग्रहण नहीं किया था, बल्कि वह अपने आप में एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व है। कृष्णा जी ने स्वयं कहा है कि जब वे ‘हशमत’ के रूप में लिखती हैं, तो न सिर्फ़ उनकी भाषा, और शब्द-चयन कुछ अलग हो जाते हैं, उनका हस्तलेख तक कुछ और हो जाता है। ‘हशमत’ का विषय उनके समकालीनों, साथी लेखकों के अलावा गोष्ठियों, पार्टियों में हुए अनुभव और समसामयिक मुद्दों पर उनकी प्रतिक्रियाएँ होती हैं।
‘हम हशमत’ के इस भाग में राजेन्द्र यादव और असद जैदी पर उनके आलेखों के अलावा इस समय के कुछ विवादों पर उनकी प्रतिक्रियाओं को भी लिया गया है। साहित्य, लेखक की अस्मिता, और संस्कृति से सम्बन्धित उनके कुछ पठनीय आलेख भी यहाँ हैं। देश के वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक पर्यावरण से कृष्णा जी इधर बहुत क्षुब्ध और निराश रही हैं, लोकतंत्र के भविष्य की चिन्ता उन्हें बार-बार सताती रही है। इसकी छवियाँ इस सामग्री में बार-बार सामने आएँगी। भाषा को लेकर ‘सारिका’ में प्रकाशित उनकी एक प्रतिक्रिया विशेष तौर पर पढ़ी जानी चाहिए। इसमें उन्होंने अत्यन्त स्पष्टता से बोलियों, भाषा और प्रान्तीय बोलियों के अन्तर्सम्बन्धों पर अपनी बात कही है।
https://rajkamalprakashan.com/hum-hushmat-vol-4.html
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