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Dil-o-Danish = दिलो दानिश

By: Publication details: Rajkamal Paperbacks, 2021. New Delhi:Description: 234p.; pbk; 22cmISBN:
  • 9788126712014
Subject(s): DDC classification:
  • 891.433 SOB
Summary: हिन्दी जगत में अपनी अलग और विशिष्ट पहचान के लिए मशहूर कृष्णा सोबती का हरेक उपन्यास विशिष्ट है। शब्दों की आत्मा को छूने-टटोलने वाली कृष्णा जी ने ‘दिलो-दानिश’ में दिल्ली की एक पुरानी हवेली और उसमें रहनेवाले लोगों के माध्यम से तत्कालीन जीवन और समाज का जैसा चित्रण किया है, वह अनूठा है। हालाँकि इस उपन्यास का कथानक एक सामन्ती हवेली और सामन्ती रईस समाज व्यवस्था से वाबस्ता है लेकिन कृष्णा जी के रचनात्मक कौशल का ही कमाल है कि उन्होंने उसकी अच्छाइयों और बुराइयों का तटस्थ आत्मीयता के साथ चित्रण किया है। देश की आज़ादी से पहले हमारे समाज में सामन्ती पारिवारिक व्यवस्था थी जिसमें रईसों की पत्नी के अलावा दूसरी कई स्त्रियों से सम्बन्ध भी मान्य थे, लेकिन इस उपन्यास का मुख्य पात्र कृपानारायण पत्नी के अलावा मात्र एक अन्य स्त्री से सम्बन्ध रखता है, लेकिन दोनों स्त्रियों और उनके बच्चों की परवरिश जिस नेकनीयति से करता है, वह क़ाबिले-तारीफ़ है। प्रेम-मुहब्बत, सामाजिकता और जीवन के सुख-दु:ख की छोटी-बड़ी कथा-कहानियों का संगुम्फित विन्यास है— ‘दिलो-दानिश’, जिसे पाठक नई सज्जा में फिर से पढ़ना चाहेंगे, यह हमारा विश्वास है। https://rajkamalprakashan.com/dilo-danish.html
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हिन्दी जगत में अपनी अलग और विशिष्ट पहचान के लिए मशहूर कृष्णा सोबती का हरेक उपन्यास विशिष्ट है। शब्दों की आत्मा को छूने-टटोलने वाली कृष्णा जी ने ‘दिलो-दानिश’ में दिल्ली की एक पुरानी हवेली और उसमें रहनेवाले लोगों के माध्यम से तत्कालीन जीवन और समाज का जैसा चित्रण किया है, वह अनूठा है।

हालाँकि इस उपन्यास का कथानक एक सामन्ती हवेली और सामन्ती रईस समाज व्यवस्था से वाबस्ता है लेकिन कृष्णा जी के रचनात्मक कौशल का ही कमाल है कि उन्होंने उसकी अच्छाइयों और बुराइयों का तटस्थ आत्मीयता के साथ चित्रण किया है। देश की आज़ादी से पहले हमारे समाज में सामन्ती पारिवारिक व्यवस्था थी जिसमें रईसों की पत्नी के अलावा दूसरी कई स्त्रियों से सम्बन्ध भी मान्य थे, लेकिन इस उपन्यास का मुख्य पात्र कृपानारायण पत्नी के अलावा मात्र एक अन्य स्त्री से सम्बन्ध रखता है, लेकिन दोनों स्त्रियों और उनके बच्चों की परवरिश जिस नेकनीयति से करता है, वह क़ाबिले-तारीफ़ है।

प्रेम-मुहब्बत, सामाजिकता और जीवन के सुख-दु:ख की छोटी-बड़ी कथा-कहानियों का संगुम्फित विन्यास है— ‘दिलो-दानिश’, जिसे पाठक नई सज्जा में फिर से पढ़ना चाहेंगे, यह हमारा विश्वास है।

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