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Ai larki = ऐ लड़की

By: Publication details: Rajkamal Paperbacks, 2021. New Delhi:Description: 87p.; pbk; 22cmISBN:
  • 9788126716098
Subject(s): DDC classification:
  • 891.433 SOB
Summary: यह एक लम्बी कहानी है—यों तो मृत्यु की प्रतीक्षा में एक बूढ़ी स्त्री की, पर वह फैली हुई है उसकी समूची ज़िन्दगी के आर-पार, जिसे मरने के पहले अपनी अचूक जिजीविषा से वह याद करती है। उसमें घटनाएँ, बिम्ब, तस्वीरें और यादें अपने सारे ताप के साथ पुनरवतरित होते चलते हैं—नज़दीक आती मृत्यु का उसमें कोई भय नहीं है बल्कि मानो फिर से घिरती-घुमड़ती सारी ज़िन्‍दगी एक निर्भय न्योता है कि वह आए, उसके लिए पूरी तैयारी है। पर यह तैयारी अपने मोह और स्मृतियों, अपनी ज़िद और अनुभवों का पल्ला झाड़कर किसी वैरागी सादगी में नहीं है बल्कि पिछले किये-धरे को एकबारगी अपने साथ लेकर मोह के बीचोबीच धँसते हुए प्रतीक्षा है—एक भयातुर समय में, जिसमें हम जीवन और मृत्यु, दोनों से लगातार डरते रहते हैं, उसमें सहज स्वीकार, उसकी विडम्बना और उसकी ट्रैजीकॉमिक अवस्थिति का पूरा और तीखा अवसाद है। यह कथा अपनी स्मृति में पूरी तरह डूबी स्त्री का जगत् को छोड़ते हुए अपनी बेटी को दिया निर्मोह का उपहार है। राग और विराग के बीच चढ़ती-उतरती घाटी को भाषा की चमक में पार करते हुए कोई यह सब जंजाल छोड़कर चला जानेवाला है। लेकिन तब भी यहाँ सब कुछ ठहरा हुआ है : भाषा में। कोई भी कृति सबसे पहले और सबके अन्‍त में भाषा में ही रहती है—उसी में उसका सच मिलता, चरितार्थ और विलीन होता है। कथा-भाषा का इस कहानी में एक नया उत्कर्ष है। उसमें होने, डूबने-उतराने, गढ़ने-रचने की कविता है—उसमें अपनी हालत को देखता-परखता, जीवन के अनेक अप्रत्याशित क्षणों को सहेजता और सच्चाई की सख़्ती को बखानता गद्य है। प्रूस्त ने कहीं लिखा है कि लेखक निरन्तर सामान्य चेतना और विक्षिप्तता की सरहद के आर-पार तस्करी करता है। ‘ऐ लड़की’ कविता के इलाक़े से गद्य का, मृत्यु के क्षेत्र से जीवन का चुपचाप उठाकर लाया-सहेजा गया अनुभव है। https://rajkamalprakashan.com/aai-larki.html
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यह एक लम्बी कहानी है—यों तो मृत्यु की प्रतीक्षा में एक बूढ़ी स्त्री की, पर वह फैली हुई है उसकी समूची ज़िन्दगी के आर-पार, जिसे मरने के पहले अपनी अचूक जिजीविषा से वह याद करती है। उसमें घटनाएँ, बिम्ब, तस्वीरें और यादें अपने सारे ताप के साथ पुनरवतरित होते चलते हैं—नज़दीक आती मृत्यु का उसमें कोई भय नहीं है बल्कि मानो फिर से घिरती-घुमड़ती सारी ज़िन्‍दगी एक निर्भय न्योता है कि वह आए, उसके लिए पूरी तैयारी है। पर यह तैयारी अपने मोह और स्मृतियों, अपनी ज़िद और अनुभवों का पल्ला झाड़कर किसी वैरागी सादगी में नहीं है बल्कि पिछले किये-धरे को एकबारगी अपने साथ लेकर मोह के बीचोबीच धँसते हुए प्रतीक्षा है—एक भयातुर समय में, जिसमें हम जीवन और मृत्यु, दोनों से लगातार डरते रहते हैं, उसमें सहज स्वीकार, उसकी विडम्बना और उसकी ट्रैजीकॉमिक अवस्थिति का पूरा और तीखा अवसाद है।

यह कथा अपनी स्मृति में पूरी तरह डूबी स्त्री का जगत् को छोड़ते हुए अपनी बेटी को दिया निर्मोह का उपहार है। राग और विराग के बीच चढ़ती-उतरती घाटी को भाषा की चमक में पार करते हुए कोई यह सब जंजाल छोड़कर चला जानेवाला है। लेकिन तब भी यहाँ सब कुछ ठहरा हुआ है : भाषा में।

कोई भी कृति सबसे पहले और सबके अन्‍त में भाषा में ही रहती है—उसी में उसका सच मिलता, चरितार्थ और विलीन होता है। कथा-भाषा का इस कहानी में एक नया उत्कर्ष है। उसमें होने, डूबने-उतराने, गढ़ने-रचने की कविता है—उसमें अपनी हालत को देखता-परखता, जीवन के अनेक अप्रत्याशित क्षणों को सहेजता और सच्चाई की सख़्ती को बखानता गद्य है। प्रूस्त ने कहीं लिखा है कि लेखक निरन्तर सामान्य चेतना और विक्षिप्तता की सरहद के आर-पार तस्करी करता है। ‘ऐ लड़की’ कविता के इलाक़े से गद्य का, मृत्यु के क्षेत्र से जीवन का चुपचाप उठाकर लाया-सहेजा गया अनुभव है।

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