Balchanma = बलचनमा
Nagarjun
Balchanma = बलचनमा - 8th - New Delhi: Rajkamal Paperbacks, 2020. - 174p.; pbk; 22cm.
Includes authors introduction
‘बलचनमा’ की गणना हिन्दी के कालजयी उपन्यासों में की जाती है। छठी दशाब्दी के आरम्भिक वर्षों में प्रकाशित होते ही इसकी धूम मच गई और आज तक यह
उसी प्रकार सर्वप्रिय है। इसे हिन्दी का प्रथम आंचलिक उपन्यास होने का भी गौरव प्राप्त
है।
दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत का सामन्ती जीवन भी ग़रीबों की त्रासदी से भरा पड़ा है, और यह परम्परा अभी समाप्त होने में नहीं आ रही। इस उपन्यास में चौथे दशक के आसपास मिथिला के दरभंगा ज़िले के ज़मींदार समाज और उनके अन्यायों की कहानी बड़े मार्मिक ढंग से लिखी गई है। ‘बलचनमा’ दरअसल एक प्रतीक है अत्याचारों से उपजे विद्रोह का जो धनाढ्य समाज के अत्याचारों की कारुणिक कथा कहता है। ‘बलचनमा’ का भाग्य उसे उसी कसाई ज़मींदार की भैंस चराने के लिए विवश करता है जिसने अपने बग़ीचे से एक कच्चा आम तोड़कर खा जाने के अपराध में उसके पिता को एक खम्भे से बँधवाकर मरवा दिया था। लेकिन वह गाँव छोड़कर शहर भाग जाता है और ‘इंक़लाब’, ‘सुराज’ आदि शब्दों का ठीक उच्चारण तक न कर पाने पर भी शोषकों से संघर्ष करने के लिए उठ रहे आन्दोलन में शामिल हो जाता है।
मनीषी कवि-कथाकार नागार्जुन का यह उपन्यास साहित्य की महत्त्वपूर्ण धरोहर है।
https://rajkamalprakashan.com/balchanma.html
9788126702664
Hindi
Novel
891.433 / NAG
Balchanma = बलचनमा - 8th - New Delhi: Rajkamal Paperbacks, 2020. - 174p.; pbk; 22cm.
Includes authors introduction
‘बलचनमा’ की गणना हिन्दी के कालजयी उपन्यासों में की जाती है। छठी दशाब्दी के आरम्भिक वर्षों में प्रकाशित होते ही इसकी धूम मच गई और आज तक यह
उसी प्रकार सर्वप्रिय है। इसे हिन्दी का प्रथम आंचलिक उपन्यास होने का भी गौरव प्राप्त
है।
दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत का सामन्ती जीवन भी ग़रीबों की त्रासदी से भरा पड़ा है, और यह परम्परा अभी समाप्त होने में नहीं आ रही। इस उपन्यास में चौथे दशक के आसपास मिथिला के दरभंगा ज़िले के ज़मींदार समाज और उनके अन्यायों की कहानी बड़े मार्मिक ढंग से लिखी गई है। ‘बलचनमा’ दरअसल एक प्रतीक है अत्याचारों से उपजे विद्रोह का जो धनाढ्य समाज के अत्याचारों की कारुणिक कथा कहता है। ‘बलचनमा’ का भाग्य उसे उसी कसाई ज़मींदार की भैंस चराने के लिए विवश करता है जिसने अपने बग़ीचे से एक कच्चा आम तोड़कर खा जाने के अपराध में उसके पिता को एक खम्भे से बँधवाकर मरवा दिया था। लेकिन वह गाँव छोड़कर शहर भाग जाता है और ‘इंक़लाब’, ‘सुराज’ आदि शब्दों का ठीक उच्चारण तक न कर पाने पर भी शोषकों से संघर्ष करने के लिए उठ रहे आन्दोलन में शामिल हो जाता है।
मनीषी कवि-कथाकार नागार्जुन का यह उपन्यास साहित्य की महत्त्वपूर्ण धरोहर है।
https://rajkamalprakashan.com/balchanma.html
9788126702664
Hindi
Novel
891.433 / NAG