Yaad ho ki na yaad ho = याद हो कि न याद हो

Singh, Kashinath

Yaad ho ki na yaad ho = याद हो कि न याद हो - New Delhi: Rajkamal Prakashan, 2016. - 207p.; hbk; 23cm.

Includes author introduction

काशीनाथ जी ने संस्मरण को अकेले जितना दिया है किसी एक विधा को कोई एक क़लम बिरले ही दे पाती है। धर्मोचित श्रद्धा जिनकी ध्वजवाहक है, उन तमाम भीनी-भीनी भावनाओं में रसी-बसी, चीमड़-सी विधा उनके यहाँ आकर खेलने लगती है। किसी को याद करके वे न तो कोई शास्त्र-सम्मत ऋण चुकाते हैं, न उसके छिद्रों से अपनी महानता पर रोशनी फेंकते हैं, वे उस व्यक्ति, उस स्थान, उस समय को उसकी हर सिलवट समेत भाषा में रूपान्तरित करते हैं, और कुछ ऐसे कौशल से कि उनका विषयगत भी वस्तुगत होकर दिखाई देता है।

इस जिल्द में चित्रित हजारीप्रसाद द्विवेदी, धूमिल, त्रिलोचन, नामवर सिंह, अस्सी, बनारस और इन सबके साथ लगा-बिंधा वह समय आपको कहीं और नहीं मिलेगा। आप ख़ुद भी उन्हें उस तरह नहीं देख सकते जिस तरह इन संस्मरणों में उन्हें देख लिया गया है।

यह भाषा, जो अपनी क्षिप्रता में फ़िल्म की रील को टक्कर देती प्रतीत होती है, आपको सिर्फ़ चित्र नहीं देती, पूरा वातावरण देती है जिसमें और सब चीज़ों के साथ आपको देखने का तरीक़ा भी मिलता है। इन संस्मरणों को पढ़कर हम जान लेते हैं कि अपने किसी समकालीन को देखें तो कैसे देखें, अपने जीवन में रोज़-रोज़ गुज़रनेवाली किसी जगह को जिएँ तो कैसे जिएँ और अपने समय को उसकी औक़ात बताते हुए भोगें तो कैसे भोगें।

https://rajkamalprakashan.com/yaad-ho-ki-na-yaad-ho.html


9788126728237


Hindi
Memoir

920 / SIN


Copyright ©  2022 IIT Gandhinagar Library. All Rights Reserved.

Powered by Koha