Saadar aapka = सादर आपका

Sinha, Daya Prakash

Saadar aapka = सादर आपका - New Delhi: Vani Prakashan, 2013. - 80p.: pbk: 22cm.

"सादर आपका' वर्तमान उपभोक्ता संस्कृति की विकृति को स्थापित करता है। सैकड़ों वर्षों से धर्म-जनित नैतिकता ने विवाह और परिवार की संस्था को पोषित किया था किन्तु उपभोक्तावाद ने इनको जर्जरित कर दिया है। आज लोगों का धर्म के प्रति आस्था का क्षरण हुआ है, किन्तु उनके विकल्प के रूप में धर्म-निरपेक्ष नैतिक मूल्यों का विकास नहीं हुआ है, जो समाज को नियमित कर सके। अतएव, एक संक्रान्तिकालीन अराजकता समाज में व्याप्त है। सबकुछ बिखरा-बिखरा-सा है; हर कोई टूटता हुआ, डूबता हुआ, विकृत एवं व्याकृत दिखाई पड़ता है। नाटक 'सादर आपका' उपभोक्तावाद से ग्रसित एक परिवार के माध्यम से शाश्वत एवं तात्कालिक मूल्यों के संघर्ष को नाट्य-रूप देता है।

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9789350725528


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891.432 / SIN


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