Sumitranandan Pant granthavali: Vols. 1-7 = सुमित्रानंदन पंत ग्रन्थावली: खंड 1-7
Pant, Sumitrnandan
Sumitranandan Pant granthavali: Vols. 1-7 = सुमित्रानंदन पंत ग्रन्थावली: खंड 1-7 - 5th ed. - New Delhi: Rajkamal Prakashan, 2022 - 240p. hbk; 20cm
ग्रंथावली के इस प्रथम खंड में पंत जी की वे पाँच आरम्भिक कृतियाँ सम्मिलित हैं, जिनकी रचना उन्होंने काल–क्रमानुसार सन् 1935 से पूर्व की थी। हिन्दी कविता के प्रसिद्ध छाया–युग की विशिष्ट देन के रूप में ये बहुचर्चित रही हैं।
पहली कृति ‘हार’ एक उपन्यास है जिसकी रचना उन्होंने सोलह–सत्रह वर्ष की अल्प वय में की थी। विश्व-प्रेम को वाणी देनेवाली यह कथा–कृति रचनाकार के समस्त कृतित्व के अन्त:स्व को अनुध्वनित करती है। ‘वीणा भावमय’ प्रगीतों का संग्रह है जिसमें कवि–मन की सहज कोमलता, माधुर्य और भोलापन है, साथ ही एक ‘दुधमुँही आत्मा की सुरभि’ भी। ‘ग्रन्थि’ एक लघु खंडकाव्य है, इसकी वियोगान्त प्रणय–कथा इतनी मर्मस्पर्शी है कि इससे सहज ही कवि की ‘आपबीती’ का भ्रम होने लगता है। ‘पल्लव’ की कविताएँ प्रकृति और मानव–हृदय के तादात्म्य के मोहक भावचित्र प्रस्तुत करती हैं, विश्वव्यापी वेदनानुभूति इनमें पूरी प्रभावकता से अभिव्यंजित है। ‘गुंजन’ के गीत सौन्दर्य–सत्य के साक्षात्कार के गीत हैं। ‘सुन्दरम्’ के आराधक कवि इनमें क्रमश: ‘शिवम्’ की ओर उन्मुख होते हैं। ये गीत वस्तुत: व्यापक जीवन–चेतना के मुखरित उल्लासराग हैं। ‘ज्योत्स्ना’ एक प्रतीकात्मक गद्य–नाटक है जिसमें ज्योतिर्मय प्रकाश से जाज्वल्यमान सुन्दर–सुखमय जग–जीवन की कल्पना को कलात्मक अभिव्यक्ति मिली है, इसमें गीतिकाव्य–सा सम्मोहन है।
https://rajkamalprakashan.com/sumitranandan-pant-granthavali-vols-1-7.html
9788126709878
Panta, Sumitrānandana, 1900-1977
Hindi fiction
Hindi literature
Collected works
891.4317 / PAN
Sumitranandan Pant granthavali: Vols. 1-7 = सुमित्रानंदन पंत ग्रन्थावली: खंड 1-7 - 5th ed. - New Delhi: Rajkamal Prakashan, 2022 - 240p. hbk; 20cm
ग्रंथावली के इस प्रथम खंड में पंत जी की वे पाँच आरम्भिक कृतियाँ सम्मिलित हैं, जिनकी रचना उन्होंने काल–क्रमानुसार सन् 1935 से पूर्व की थी। हिन्दी कविता के प्रसिद्ध छाया–युग की विशिष्ट देन के रूप में ये बहुचर्चित रही हैं।
पहली कृति ‘हार’ एक उपन्यास है जिसकी रचना उन्होंने सोलह–सत्रह वर्ष की अल्प वय में की थी। विश्व-प्रेम को वाणी देनेवाली यह कथा–कृति रचनाकार के समस्त कृतित्व के अन्त:स्व को अनुध्वनित करती है। ‘वीणा भावमय’ प्रगीतों का संग्रह है जिसमें कवि–मन की सहज कोमलता, माधुर्य और भोलापन है, साथ ही एक ‘दुधमुँही आत्मा की सुरभि’ भी। ‘ग्रन्थि’ एक लघु खंडकाव्य है, इसकी वियोगान्त प्रणय–कथा इतनी मर्मस्पर्शी है कि इससे सहज ही कवि की ‘आपबीती’ का भ्रम होने लगता है। ‘पल्लव’ की कविताएँ प्रकृति और मानव–हृदय के तादात्म्य के मोहक भावचित्र प्रस्तुत करती हैं, विश्वव्यापी वेदनानुभूति इनमें पूरी प्रभावकता से अभिव्यंजित है। ‘गुंजन’ के गीत सौन्दर्य–सत्य के साक्षात्कार के गीत हैं। ‘सुन्दरम्’ के आराधक कवि इनमें क्रमश: ‘शिवम्’ की ओर उन्मुख होते हैं। ये गीत वस्तुत: व्यापक जीवन–चेतना के मुखरित उल्लासराग हैं। ‘ज्योत्स्ना’ एक प्रतीकात्मक गद्य–नाटक है जिसमें ज्योतिर्मय प्रकाश से जाज्वल्यमान सुन्दर–सुखमय जग–जीवन की कल्पना को कलात्मक अभिव्यक्ति मिली है, इसमें गीतिकाव्य–सा सम्मोहन है।
https://rajkamalprakashan.com/sumitranandan-pant-granthavali-vols-1-7.html
9788126709878
Panta, Sumitrānandana, 1900-1977
Hindi fiction
Hindi literature
Collected works
891.4317 / PAN